कभी अपनेे दर्दो-ग़म, कभी उनके दर्दो-ग़म-
कभी अपनेे दर्दो-ग़म ने परेशां किया,
कभी उनके दर्दो-ग़म ने हैरां किया।
अपनी तो जैसे कटी,कट गई जवानी,
उन्हें भी ताउम्र मेरे ख़यालों में जीना पड़ा।
मुकर्रर न हुआ फिर, वस्ल उनका मेरा,
हमें भी, उन्हें भी, हिज़्र के बाजू सोना पड़ा।
ख़ाना-ख़राब हम भी रहे, वो भी रहे,
फ़ुर्क़त में, दीवारों को घर कहना पड़ा।
हर नफ़स, कुछ वो हमसे कहते रह गये,
हर नफ़स, कुछ हमें उनसे कहना पड़ा।
उन्हें उलझा गई, शायद एक नज़र हमारी,
हमें उनके गेसु-ए-ख़मदार में उलझना पड़ा।