*** कभी अपना वास्तविक क्षमता न खोना ***
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हेलो किट्टू ❗
ये बात है रविवार , 26 जनवरी , 2020 की ।
एक सज्जन व्यक्ति ने मुझे अपना परिचय देते समय में बताया कि बचपन से अभी तक मैं शिक्षा ग्रहण के दौरान घर से छात्रावास में रहा हूं ।
जिसके कारण मैं उसी वातावरण में ढल गया , ज्यादा पारिवारिक त्योहार या उत्सव में खुद को शामिल नहीं होता न ही मुझे अब इतना रूचि है । बचपन में था लेकिन उद्देश्य को यानी आई. ए. एस. बनने के अलावा ज्यादा किसी अन्य बात में रूचि नहीं है ।
आई.ए.एस. बनने बाद ही अन्य उद्देश्यों को महत्व दूंगा । आर्थिक रूप से मजबूत परिवार से हूं सम्पत्ति भी बहुत है क्योंकि अपना चिमनी ( ईंट बनाने वाला ) , ट्रेक्टर , जे. सी. बी. आदि का व्यवसाय है। फिर भी मैं सामाज में इज्जत पाना चाहता हूं और सामंजस्य बना कर रहना चाहता हूं । अपने आप धन ,सब आधारभूत सुख – सुविधाओं अर्जित करने ही शांत होऊंगा । यहां तक कि मैं ब्रश भी एक – दो दिन के अंतराल कर पाता हूं क्योंकि सुबह उठकर 6 – 7 बजे तक सीधा अध्ययन स्थान ( library ) चला जाता हूं फिर सीधा रात में 11 -12 बजे तक वापिस आता हूं ।
कभी – कभी ऐसा होता है कि मेरी कुर्सी कोई अन्य सहपाठी बदल लेता है तो मैं असंतुष्टि हो जाता हूं अगर किसी कारणवश लाईब्रेरी बंद होती है तो मेरा पूरा दिन व्यर्थ हो जाता है मैं तनाव में आ जाता हूं क्योंकि अपने कमरे में मैं पढ़ नहीं पाता क्योंकि मैं अपने लाईब्रेरी के माहौल में ही पढ़ पाता हूं । कमरे में न के बराबर पढ़ाई हो पाती है । ये तो सबके साथ होता है कि वो जिस जगह रहता है उसी के अनुकूल हो जाता है ।
क्यों आपको क्या लगता है ❓
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मेरा जवाब :-
मैंने कहा ” काबिलियत तारिफ है कि आप अपने उद्देश्य आई. ए.एस. बनने के प्रति इतने दृढ़ निश्चय है । आपके अनुसार आपका दिनचर्या भी ठीक ही है । परन्तु अगर किसी कारणवश लाईब्रेरी लम्बे समय तक ना जा पाए तो आप पढ़ नहीं पाएंगे न ही अपने उद्देश्य की प्राप्ति भी करने में अशक्क्ष हो सकते हैं । लेकिन ये सारा काम करने के लिए आत्मबल हो अनिवार्य है परन्तु उसके लिए इस शरीर का स्वस्थ रहना जरूरी है और अपने वास्तविक गुण को किसी हालात या स्थिति के कारण नष्ट करना कहां कि बुद्धिमत्ता हैं । ”
जैसे :-
अगर आप सरसों के दानों या अन्य किसी बीज को खेत में बोए या छत पर रखे गमले में उसमे भी सरसों के फूल के पीले फूल ही होंगे जो खेत के बीज से निकलने क्योंकि वो उसकी वास्तविक गुण हैं जो स्थान बदलने पर नहीं बदलता है ।
अगर फूलों के पोधों को बगीचे में लगाओ या गमले में उनके पुष्प के रंग नहीं बदलते न ही वो खिलना छोड़ते हैं । हमारे चारों ओर करोड़ों उदाहरण मौजूद है जो अपने वास्तविकता को बदलते नहीं है ।
रही बात जिस स्थान या वातावरण में रह रहे हैं उसके प्रति अनुकूल रहना और अधीन होना । दोनों में बहुत फ़र्क है ।
अनुकूल :- ये गुण उस वातावरण के प्रति हमें अपने आपको यापन करने के लिए अवसर देना अर्थात हमें रहने का तकनीक है । अधीन :- ये हमारी कमजोर अर्थात एकल क्षमता है जो सिर्फ तभी कामयाब है जब हमारे पसंद बिना किसी अनुभव का परिणाम है ।
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” जीवन एक यात्रा है जिसके हर मोड़ पर नया अनुभव मिलता है जो भावी जीवन को आनंदित करता है , परंतु भविष्य की चिंता में वर्तमान आनंद भी व्यर्थ हो जाता है और निराशा में विलीन हम असंतुष्टि के साथ अपने बहुमूल्य यात्रा का आनंद नहीं ले पाते । ”
” जीवन हमें जी कर चली जाती है और हम उसकी तलाश में उसे ही महत्व नहीं दे पाते । ”
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️