कब तक
झूठ और असत्य के भ्रमजाल को फैलाया है आपने,
झूठे धर्म के फरेब का सच बताओगे कब तक ।
धर्म के नाम पर चिताएं जलाते रहे हो हर वर्ष,
बस्तियां जली इस नफ़रत में उन्हें बसाओगे कब तक ।
गांव, कस्बे, और शहर में फैला है देवालयों का जाल,
कण – कण में बसे भगवान को दिखाओगे कब तक ।
अबोध नौनिहालों को शिकार भी बनाते हो,
फैली है अशिक्षा चहुंओर दूर भगाओगे कब तक ।
समझ पराई अबला स्त्री को नौचते रहे हैं,
समाज के बहशी दरिंदों को जलाओगे कब तक ।
देश की तरक्की,खुशहाली में हिस्सा हमारा भी है,
उस तरक्की के फल का हिस्सा दिलाओगे कब तक ।
न्याय, समता, बंधुता, अखंडता की बात करती है प्रस्तावना,
उस संविधान की प्रस्तावना को लागू कराओगे कब तक ।
आर एस आघात
25 -10 – 2023