कब तक महफूज रहेंगे आप ?
कोई जरुरी नहीं कि मैं जो कहूं, वही करें आप
पर वह तो करें, जो निहायत ही जरुरी समझें आप l
हो सकता है, मेरी बातों से सहमत नहीं हो आप
आप अपनी ही किजिए, जो दिल में सोंचते है आप l
मेरे कहने से क्या होता है, सुनिएँ अपने दिल की आप
आगाज देखकर आज, कोई फैसला तो लीजिए आप l
नफरत न कुदरत सिखाती है, न मजहब सिखाती है
दरिया दरिया से मिलती है, पेड़ों को झूमते देखें हैं आपl
जिस मिट्टी में बीज पड़े, जिस मिट्टी में तरु हुए आप
फुलें -फलें, उसे सलाम करने में क्यों सकुचाते है आप l
यहाँ लोकतंत्र है, यह तो अच्छा तरह जानते है आप
वोटर आई. डी./ आधार भी अपने साथ रखिए आप l
लोकतंत्र में चाहे जो भी झंडा उठा लीजिए आप
राष्ट्रीय दिवसों पर अपना तिरंगा फहरा लीजिए आप l
क्या अपने ही चिराग से, घर में आग लगाते हैं आप ?
पडोसी का घर जले तो,कबतक महफूज़ रहेंगे आप?
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर