कब तक कौन रहेगा साथी
, कब तक कौन रहेगा साथी
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जीवन में साथी मिलते हैं साथ निभाने को ।
लेकिन साथ छोड़ जाते हैं परगति जाने को।।
योग-सु-योग मिले ,तब, साथी मिलते हैं —
योग कौन सा विकल रहे , मन दर्शन पाते हैं !
दुनियां पीछे रह जाये,जब, साथी मिल जाये –
जगह अहम को मन मिल जाये,दर्प दिखाने को!
स्याह रात के घुप्प अंधेरे भी ना डरा सके —
जब साथी का साथ मिला था, साथ निभाने को!
दिन में रात ,रात में दिन था,साथी की दम पर-
नेह धार ने बदन भिंगोया ,मन तक जाने को !
शीत लहरियों की सुग-बुग ने,तन को दग्ध किया-
लेकिन मन को झुका न पायी,बे-बश हो जाने को !
अब क्या अब तो पिछली बातें,यादें बन उभरें –
तन-मन कैसे वश में आया ,तर्पन पाने को !
अर्पन-तर्पन का रिश्ता है,अर्पन है तो तर्पन है-
साथी बिन अर्पन किस को हो,तर्पन पाने को !
साथी के जाने से यूँ तो , जीवन थम जाता –
किन्तु सृष्टि क्या कभी रुकी है,पिछला पाने को !
कब -तक कौन रहेगा साथी,समय बताएगा !
यादें,साथ हुआ करती हैं , समय बिताने को !!
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आशु-चिंतन / स्वरूप दिनकर
16/12/2023
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