” कब तक इनको जलना होगा ” !!
दहक रहे हैं दामन सबके ,
अब तो यह सब टलना होगा !
जंगल जंगल आग लगी है ,
कब तक इनको जलना होगा !!
बोया कम काटा ज्यादा है ,
भावी चिंता यहाँ किसे है !
सोना सोना पाया हमने ,
अब पारस को यहाँ घिसे हैं !
आग उगलती धरणी है अब ,
हाथ हमें भी मलना होगा !!
सूखे की है मार पड़ी अब ,
जल स्तोत्र भी लुप्त हो रहे !
बून्द बून्द पानी सब तरसें ,
धरती , अंबर , पवन तप रहे !
खूब किया है दोहन हमने ,
कदम फूंक अब चलना होगा !!
आग तपे है काया सिकुड़ी ,
पेट , पीठ भी बेदम लगते !
मात शिशु औ युवा प्रौढ़ सब ,
घटती उम्र थके से लगते !
आज को जीना यदि लक्ष्य है ,
कल के लिए सँभलना होगा !!
हरा भरा जीवन सुहावना ,
हरियाली हो गोद धरा की !
नवल पौध हम रोपें सींचे ,
चूक न हो अब यहाँ ज़रा सी !
सधे सन्तुलन , हँसी प्रकृति ,
नयी सोच संग ढलना होगा !!
छाया होगी माया होगी ,
बरखा गिरे छमाछम होगी !
नदिया , कुए , तलैया , पोखर ,
पानी भरे , झमाझम होगी !
प्यासे प्यासे मरूथल न हों ,
कल को हमें बदलना होगा !!
बृज व्यास