कब्ज़
कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं दुनिया की हर बीमारी का कारण और उसका निराकरण जानता हूं , मरीज का ठीक होना ना होना उसके भाग्य और भगवान की मर्जी पर निर्भर करता है । पर जब कभी किसी कब्ज के मरीज से मेरा सामना पड़ता है मैं हथियार डाल देता हूं । यहां मैं आदतन कब्ज़ अर्थात habitual constipation से जुड़ी समस्या के इलाज ( treatment part ) पर प्रकाश ना डालते हुए इसके व्यवहारिक पक्ष का उल्लेख करूंगा । इतनी किताबों को पढ़ने एवं ज्ञानियों के इस विषय पर व्याख्यान सुनने के बाद भी मैं आज तक कब्ज की परिभाषित व्याख्या को ना जान सका क्योंकि हम लोग अधिकतर अंग्रेजी लेखकों की पुस्तकों से इस विषय पर ज्ञान प्राप्त करते हैं और उनके यहां के संस्कारों में रोज सुबह उठकर नित्य कर्म की इस क्रिया से मुक्त होना अनिवार्य नहीं है । वे लोग कभी रोज़ तो कभी कुछ दिन छोड़कर या हफ्ते में या महीने में किसी भी दिन , किसी भी समय फारिग होकर संतोष प्राप्त कर लेते हैं । जबकि मेरे मरीज संस्कारों में बंधे पुश्तों से रोज सुबह उठकर खुल कर पेट साफ होने की कामना रखते हैं । ऐसे मरीज प्रायः सर्वांगीण कब्ज़ियत में ( constipated ) रहते हैं । वे अपने विचारों में , बोलने में , हाव भाव में , किसी दान दक्षिणा में हर जगह संचय की प्रवृत्ति रखते हैं और जो कुछ भी उनका अपना है उसे बांटना या त्यागना नहीं चाहते चाहे वह उनके खुद का मल ही क्यों ना हो । उन्हें कुछ भी इलाज दे दो वे हमेशा वैसा ही चेहरा मसोसकर निराशा से उत्तर देंगे की पेट साफ नहीं हुआ । मैं उनकी यह बात पहले से ही जानता हूं की पेट साफ करने की दो – चार दवाइयां वे मुझसे ज्यादा जानते हैं । उदाहरण के तौर पर वे अग्निबाण हरड़े , इच्छाभेदी रस , पंचसकार चूर्ण , सनाय की पत्ती , मुनक्के , त्रिफला , कैस्टर ऑयल और एलोपैथी की कुछ पेटेंट दवाइयों को जानते हैं और मेरा पर्चा लिखने के बाद वे मुझे बताते हैं कि यह दवा वे इस्तेमाल कर चुके हैं और इतनी डॉक्टरी तो उन्हें भी आती है , तथा जब तक उनके पर्चे पर मेरे द्वारा मेरी लिखी हुई दवा को मेरे ही हाथों से कटवा कर कोई और दवा नहीं लिखवा लेते उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती । इस मर्ज़ की दवाइयों की लोकप्रियता इनके विज्ञापनों में नजर आती है जो अक्सर पीत पत्रिकाओं के पन्नों पर ऐसी सुबह तो कभी हुई नहीं जैसे शीर्षक से शुरू होकर उन्हें एक सुहावनी हल्की सुबह का लालच देने का वर्णन देकर उनकी दवा खरीद कर उपयोग में लाने को प्रेरित करती हैं ।ऐसे मरीज हल्के होने के लिए किसी भी हद तक कोई भी खतरा मोल लेने को तत्पर रहते हैं । मेरे एक मरीज ने मुझे बताया कि इसके लिए वह किसी के कहने पर रात को 2:30 बजे एक लोटा पानी पीकर और एक लोटा भर पानी ले कर एक टोटके के तौर पर श्मशान तक फारिग होने गया था , लेकिन कुछ नहीं हुआ । मैं अपने ऐसे कब्ज के मरीजों को शुरू में ही इस इलाज की प्रोगनोसिस और अपने इलाज की सीमाएं बताते हुए स्पष्ट कर देता हूं कि मैं सारी रात तुम्हारे साथ तुम्हारी इस कब्ज की तकलीफ पर चर्चा करने के लिए तैयार हूं , बिना इस नतीजे की गारंटी दिए कि इस रात भर की बहस के बावजूद भी तुम्हें कल सुबह होगी कि नहीं ।
अक्सर मेरे हृदयाघात से पीड़ित मरीजों को शाम के राउंड के समय यह चिंता नहीं होती कि अगले दिन उनकी सुबह होगी कि नहीं पर इस बात की चिंता जरूर रहती है कि साहब सुबह खुलकर हो गी कि नहीं । इस पर भी एक बुजुर्ग इस बात पर अड़ गये कि वह सुबह उठकर देखना चाहते हैं कि उन्हें कितनी हुई ।पहले इस इस समस्या को हल करने के लिए एक गुलाबी रंग की तरल दवा आती थी जो मल को गुलाबी रंग से चिन्हित करने के लिए मरीज को उसके भोजन के बाद पिला दी जाती थी और अगले दिन उसका गुलाबी रंग मल में मिश्रित हो बाहर आने पर मरीज को सबूत मिल जाता था , कि देखो जो तुमने खाया था अब लाल रंगत में बाहर आ चुका है पर ऐसी दवा पर अब प्रतिबंध लग जाने के पश्चात ऐसे मरीजों को सबूत के साथ तसल्ली दिलाना मेरे लिए और कठिन हो गया है । मैं उन्हें सीधी उंगली से घी न निकलने पर टेढ़ी उंगली का जिस प्रकार इस्तेमाल किया जाता है का उदाहरण देते हुए उनके उपचार का हल निकाल सकता था । पर ऐसे में सवाल उंगली किसकी होगी और यहां घी भी नहीं है पर आकर समाप्त हो जाता था । अतः उन बुजुर्ग वार को तसल्ली दिलाने के लिए मैंने इशारों इशारों में उनके रिश्तेदारों से कहा कि कल सुबह आप इन्हें बेड पैन पर बैठा दीजिएगा और फिर उस पैन में कहीं से करी कराई सामग्री मंगा कर इन्हें दिखा दीजिए गा कि यह उनके प्रयासों का फल है । अगली सुबह इस क्रिया के पालन से उन बुजुर्ग वार को यह प्रमाण मिलने पर संतुष्टि हो गई । कुछ दिन ऐसा ही चला कि बेड पैन में अपने अथक प्रयासों के बाद कुछ वह करते थे और कुछ बाहर से मिलाकर उन्हें दिखा दी जाती थी ।
मैंने सुना था की दुनिया में पैसा बहुत बड़ी चीज है और आप इससे कुछ भी खरीद सकते हैं पर कुछ चीजें जो आप पैसे से नहीं खरीद सकते उनकी सूची में एक आइटम और बढ़ गया था जिसे वह बुजुर्ग वार पैसे से नहीं खरीद सकते थे ।
इस लेख को लिखते समय मेरा उद्देश्य किसी की तकलीफों या उसकी बीमारी की हंसी उड़ाना नहीं है बल्कि अपनी चिकित्सीय राय में हम अपने मरीजों की जिस तकलीफ को इतना महत्वहीन मानते हैं वह उनके लिए किस हद दर्जे तक महत्वपूर्ण होती है यह जताना है। यह मेरी अक्षमता है कि मैं उनकी इस समस्या का उचित समाधान नहीं दे पाता हूं । शायद मुझे उनकी इस तकलीफ को और अधिक संवेदनशीलता से सुनकर एवं समझ कर गम्भीरता से उसका निदान खोजना होगा ।