कबूल
✒️जीवन ?की पाठशाला ?️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आज के युग में अधिकांशतः लोगों की जिंदगी उस बस अड्डे -रेलवे स्टेशन -हवाई अड्डे की तरह हो गई है जहाँ आसपास भीड़ तो बहुत है पर कौन दिल से अपना है यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की समय चक्र निरंतर चलायमान है जो अनवरत चलता ही रहता है -पर ये समय चक्र जब अपना रंग दिखाता है तो ऐसा बहुत कुछ दिखा देता है जो आप और हम ख्वाब में भी नहीं सोच सकते थे …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की यहाँ हर कोई आपको वैसा बनाना चाहता है जैसा उन्हें चाहिए ,ना जाने क्यों कोई भी हम जैसे भी है उसी तरीके से कबूल क्यों नहीं करना चाहते …,
आखिर में एक ही बात समझ नहीं आई की शारीरिक रूप से मरने पर तो दुनिया दाह संस्कार कर देती है -दफना देती है पर एक बात का जवाब नहीं मिल रहा की अगर कोई जीते जी अंदर से मर जाये तो कौन से रीति रिवाजों या रस्मों को अपनाया जाये क्यूंकि इस तरह सिसक सिसक कर लाश की माफिक शरीर -जिंदगी के बोझ को ढहना और अंदर ही अंदर अपने आंसुओं को पीते सामने वालों के सामने झूटी हंसी हंसना बेहद दर्दनाक -पीड़ादायक है …क्या आप कुछ कहना चाहेंगें इस बात पर ….?
बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क ? है जरूरी ….सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ….!
?सुप्रभात ?
आपका दिन शुभ हो
विकास शर्मा'”शिवाया”
?जयपुर -राजस्थान ?