कबीर क समाजदर्शन
कबीर क समाजदर्शन (भोजपुरी )
अनपढ़ कबिरा भगत बनल बा।
निर्गुण साधू बनल ठनल बा।।
केहू के ऊ नाहीं गिनलन ।
जग में आपन नाम कमइलन।।
देहलन ऊ उपदेश पियारा।
खोललन ऊ हो ज्ञान पिटारा।।
ना काहू से दोस्ती कइलन।
ना काहू क दुशमन बनलन।।
कबिरा संगति साधु भली रे।
यह गंधी क वास मधुर रे।।
साधु बनल जे जग में घूमल।
उहै बनल बढ़िया निक निर्मल।।
जे सबमें देखलेस राघव के।
बैठल उहै हृदय में सब के।।
अहंकार जे मार गिरउलेस।
उहै अमर पद निश्चित पउलेस।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।