कन्या पूजन के माने
कन्या पूजन
नो दिन के नवराता करके ,फिर कन्या पूजन होता है।
कन्या कितनी महत्वपूर्ण है , यह धर्म सनातन कहता है।
दो वर्ष से दस वर्ष तक की,नो कन्या पूजी जाती है।
नो कन्याओं के पूजन से , नवरात्री मानी जाती है।
नो कन्या भी नो स्वरूप है ,माना जाता है देवी के।
जो पूजा में लेती है कन्या ,वो सब जाता है देवी के।
जिन कन्या को पूजा जावे ,एक दिन पहले न्यौता दे।
गृह प्रवेश करने पर उनके ,नो नामो से जयकारा दे।
दूध भरी थाली में रखकर ,इनको फिर पद प्रक्षालन दे।
माथे पर कुंकुभ रोली से ,दे कर टीका फिर आसन दे।
फिर करवाकर भोजन रुचिकर, पैर पूज कर आशीष ले।
दान दक्षिणा देकर श्रध्दा , से फिर उपहार बख्शीस दे।
इस पूजा के क्या माने है ,बस थोड़ा सा समझाता हूँ।
शास्त्र अनुसार जो मानक है ,मैं भाव वही बतलाता हूँ।
दो वर्षीय कन्या का पूजन , कुमारि पूजन जाना जाता।
दूर दारिद्र्य दुःख होता है , इससे ही यह माना जाता।
तीन वर्ष की त्रिमूर्ति होती, जो घर मे समृद्दि लाती है।
धन धान्य सदा भरपूर भरे , मान्यता यही बतलाती है।
चार वर्ष की कन्या पूजन ,कल्याणी पूजन कहलाता।
इससे होता कल्याण सभी का ,यह धर्म सनातन बतलाता।
पांच वर्ष की कन्या पूजन ,रोहिणी नाम कहलाया है।
रोग मुक्ति का मारग अचूक , शास्त्रों ने समझाया है।
षष्ठ वर्षीय कन्या पूजन ,नाम दिया है कालिका का।
विद्या विजय अरु राजयोग का ,दृष्टांत सुझाया पूजन का।
सप्त वर्षीय कन्या का जब, पूजन करते है श्रध्दा से।
ऐश्वर्य हम पा जाते है ,स्वरूप जान चंडिका से।
आठ वर्ष की कन्या देखो ,शाम्भवी कहलाती है।
वाद विवाद ओर राजद्वार में ,विजय श्री मिल जाती है।
नवम वर्ष की कन्या पूजन ,साक्षात दुर्गा कहलाती है।
असाध्य काम पूरे होते और ,सब सिध्दियां मिल जाती है।
दस वर्ष की कन्या पूजन ,सुभद्रा नाम जानी जाती।
सभी मनोरथ पूरा करती ,ऐसी मान्यता मिल जाती।
मन्द मति से जितना समझा ,जितना पढ़कर ज्ञान हुआ।
मधु की गलती क्षमा करेगी ,करता माँ से यही दुआ।
★कलम घिसाई★
मधुसूदन गौतम
9414764891