कन्यादान
कन्यादान महादान बरसों से, ,रीति ये चली आई हैl
सबने ही शिद्दत से, यह रीति निभाई है l
लड़की को जन्म दिया, बस दान देने को,
साज सज्जा का सामान बनाया, एक जीती जागती इंसान को l
ना किसी ने पूछा, ना किसी ने रोका,
बस सब ने यह रीत निभाई है,
एक औरत ही बन सास मां, पुरुषों के इस नियम का पालन करवाती है,
अपने ही अस्तित्व को रुलाती जाती हैl
जब कोई आवाज उठाएं ,खुल के सांस लेना चाहे,
औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है,
मर्दो के शोषण को औरत का धर्म बताती हैl
घर की शोभा बताकर ,कैद उसे कर देते हैं,
हंसना रोना बोलना खाना हर चीज दूसरों के हिसाब से करने को, मजबूर कर देते हैं l
तुम पुरुष हो, हर चीज की तुमको आजादी है,
अपने ही मां बाप से मिलने को, तुमसे लेनी इजाजत पड़ती है ,यह कैसी तानाशाही है l
कन्यादान की रीत चली आई है,
वर्षों से इस रीति में एक लड़की ही पिस्ती आई हैl