कदम आंधियों में
गीतिका
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जब कदम आंधियों में बढ़ेंगे नहीं।
घन सघन मुश्किलों के छटेंगे नहीं।
कूदना है नदी में जरूरी बहुत।
श्रम बिना तो किनारे मिलेंगे नहीं।
एकता में बहुत शक्ति है जानिए।
जो बटे तो विजय को वरेंगे नहीं।
अब न रहना कभी भी हमें बेखबर।
लें शपथ अजनबी बन रहेंगे नहीं।
जब समय पर नहीं घन बरसते जहां।
पेड़ फूलों फलों से लदेंगे नहीं।
जब कदम ही नहीं मिल सके आपके।
साज सुर में कभी भी बजेंगे नहीं।
है मुहब्बत सुकोमल दिलों में बहुत।
मौत को यूं पतंगे चुनेंगे नहीं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य