“कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का”
छोड़ गए जो याद में अपनी, जिक्र हुआ अफसानों का
कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का
तन्हाई में रोयें बहुत, दुनिया क्या गम जानेगी
दर्द सभी का एक ही जैसा, कब ऐसा वो मानेगी
जिस पर बीती उसने जाना, आलम क्या वीरानों का
कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का
छोड़ दी सारी महफिल हमने, अपनाई तन्हाई हैं
दर्द ही बस अपना लगता हैं, बाकि चीज पराई हैं
मेरे दिल में पता बना है, गम के नए ठिकानों का
कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का
आँख से जो आंसू छलके है, उनकी कोई कहानी है
मेरे आंसू मेरा गम, औरो के लिए बस पानी है
आँखें समर्थन करते देखी, आंसू तेरे बयानों का
कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का
काश लौट कर वो आ पाते, जो गए छोड़ जमाने को
आँख का पानी काफी होता, वापिस उन्हें बुलाने को
किसके सहारे छोड़ गए हो, बहाना बना बहानों का
कत्ल सभी अब ख्वाब हुए हैं, क्या करता अरमानों का
कुमार अखिलेश
देहरादून (उत्तराखण्ड)
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