“कता”
“कता”
दिल की बातें कभी-कभी होंठों पर भी आ जाती हैं।
मुस्कुराहट मन में खिल कभी लबो पर छा जाती है।
गुजरे वक्त की नजाकत कभी गम गुदगुदा जाए तो-
तन्हाई घिरी हँसी लपक सुर्ख चेहरे को पा जाती है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“कता”
दिल की बातें कभी-कभी होंठों पर भी आ जाती हैं।
मुस्कुराहट मन में खिल कभी लबो पर छा जाती है।
गुजरे वक्त की नजाकत कभी गम गुदगुदा जाए तो-
तन्हाई घिरी हँसी लपक सुर्ख चेहरे को पा जाती है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी