कण-कण मे शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को
कण-कण मे शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को
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कण-कण में शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को,
रग -रग में था खून खोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
देश के ऊपर जान झौंक दी रण बाँकुरों और शमशीरों ने,
भरी जवानी में दे दी थी क़ुरबानी मेरे देश के बलबीरों ने,
हर पत्थर इतिहास खोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
कण-कण में शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
कंकर-कंकर पर शंकर सी चिंगारी सुलगी थी जन जन मे,
हर चिंगारी ने थी आग फैलाई हर नर नारी के तन-मन में,
सूली पर ना तन-मन डोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
कण-कण मे शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
रात दिन वो लड़े दुश्मन से खुद के सारे शौक मिटा करके,
माँ-बहन-पत्नी-पिता को खुद के तन मन से जुदा कर के,
एक से एक ग्यारह जोड़ता,कैसे मिली आजादी देश को।
कण -कण में शहीद बोलता,कैसे मिली आजादो देश को।
मनसीरत सदा तुम याद रखो उन शहीदों की शहादत को,
लाल लहू की बहा दी नदियाँ सहा नहीं था ज़ियादत को,
फिरंगियों का था राह मोड़ता,कैसे मिली आजादी देश को।
कण-कण में शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
कण-कण में शहीद बोलता,कैसे मिली आजादी देश को,
रग -रग में था खून खोलता,कैसे मिली आजादी देश को।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)