कण-कण में
कण-कण में
कण-कण कुदरत बसी हुई, कण-कण में हमारा ईश है
कण-कण ही सर्वत्र विराजमान, माया जनित प्रकृति है।
कण-कण समाया हर जगह, सरिता, धरा, झील-सागर
कण-कण में लिपटा विश्व है, ब्रम्हांड उनमें है समाहित।
कण-कण निर्मित धुंध-आंधी, उन्हीं से पूरित वायुमंडल
कण-कण में हर ऋतु समाई, ग्रीष्म, शरद वर्षा, बसंत।
उनमें ही तमस प्रकाश स्थित, सूर्य, चंद्र, तारे समाहित
कण-कण में है पवन प्रवाहित, उनसे निर्मित मेघ,विद्युत।
खनिज फल फूल जल लिए संग, वन-पर्वत से हरी-भरी
सुख-दुख की जननी जो, कण-कण निर्मित धरा हमारी।
कृम-कीट, मनुज भूमंडल में, जलचर थलचर नभचर सारे
कण-कण से निसृत सर्वस्व, मिलते कण-कण में ही सारे।
कण-कण निर्मित संसार आज, कल जाना पुनः उसी में है
अभी जो चल रही लेखनी, कवि का अंत कण-कण में है।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।