कठिन बहुत जीवन की राहें…
कभी-कभी लगता है हमको,
कठिन बहुत जीवन की राहें,
०००
जो कुछ भी उपलब्ध हमें है,
उसको हम पहचान न पाते.
जो कुछ अपने पास नहीं है,
मिलेगा कैसे जान न पाते.
पूर्ण हों कैसे उर की चाहें,
कठिन बहुत जीवन की राहें.
०००
जिस पर अपना जोर न कुछ भी,
जिद क्यों फिर उसको पाने की.
बड़ी अजब लगती है प्यारे,
महफ़िल उर के मयख़ाने की.
समझ न पड़तीं दिल की आहें,
कठिन बहुत जीवन की राहें.
०००
समय पकड़ न पाये समय पर,
अब पछताने से क्या होगा.
रहे हारते जंग-ए-ज़िन्दगी,
अब जय-गाने से क्या होगा?
मिलें जीत की कैसे बाँहें,
कठिन बहुत जीवन की राहें.
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर