कठपौल धार
कठपौल धार
यह पर्वत जिला बिलासपुर के सभी पर्वतों से ऊंची चोटी हैं , जिसे स्थानीय भाषा में धार कहते हैं।यह धार जिला सोलन व जिला बिलासपुर के मध्य स्थित सीमा पर है इसका जिला बिलासपुर की तरफ का भाग बिलासपुर में तथा जिला सोलन की ओर का भाग जिला सोलन में पड़ता है। पर्वत के सिरे पर सिद्ध बाबा बालक नाथ का मंदिर है। दिव्य औषधियों से भरपूर इस पर्वत पर कोई मनुष्य रात को ठहर नहीं सकता ,क्योंकि हिमाचल देव भूमि होने के कारण इस स्थान पर रात को वीर , भैरों, जोगनियां, परियां आज भी साक्षात रुप में वे नृत्य -गान करते हैं। कोई भी साधारण जन यह दृश्य देख कर अपनी सुध -बुध खो बैठता है या मृत्यु को प्राप्त होता है।
कठपौल धार के बारे में यह भी बताया जाता है कि कभी सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की राजधानी कठपौल धार ही हुआ करती थी। इस बात का प्रमाण कठपौलर धार के सिरे पर हाथी घोड़ों के लिए जो लोहे के खूंटे थे वह आज भी विद्यमान है। राजा के हाथी – घोड़े पानी पीने रूपनगर वर्तमान समय का रोपड़
जो कि पंजाब राज्य में है जाया करते थे। कहते हैं कि उस समय हमारी भूमि का स्तर इतना ही ऊंचा और समतल था।
कहते हैं कि उस समय राजा की प्रजा व नौकरों- चाकरों द्वारा अक्सर आकाशवाणी द्वारा पंऊ-पंऊ की आवाजें सुनाई देती थी ।स्थानीय भाषा में पंऊ अर्थात गिरना ऐसी आवाजें आती थी। जब इस बात की सूचना राजा तक पहुंचाई गई तो राजा ने काफी सोच-विचार के बाद नौकरों से कहा कि जब फिर कभी ऐसी आवाज सुनने को आए तो कह देना कि पंऊं – पंऊं क्या करती है एक बार ही गिर जा। नौकरों ने ऐसा ही किया नौकरों के कहते ही इतनी जोर की बारिश हुई की भूमि का बहुत अधिक कटान हुआ और राजा के महल व भूमि का हिस्सा बिलासपुर की ओर पहाड़ी के पैरों तले गिर पड़ा । आज इसी पहाड़ी के पैरों तले मलोखर गांव बसा हुआ है। कहते हैं कि अंतिम शासकों तक अर्थात देश स्वतंत्र होने तक राजा लोग जिन लोगों से यहां काम करवाते थे ,उन्हें कोई मजबूरी या मेहनताना नहीं दिया जाता था ।उस काम को राजा की बगार कहते थे। उन्हें उस जमीन पर काम करते समय जो कुछ भी सोना -चांदी, मुद्रा या अन्य रत्न या जो कुछ भी मिलता था उन्हीं का हो जाता था।
यू पी इंडिया लाइव टीवी न्यूज के लिए हिमाचल प्रदेश से ब्यूरों चीफ ललिता कश्यप की विशेष रिपोर्ट।