कटु दोहे
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कटु दोहे
1
करते हैं खुद फैसले, ये ‘बच्चे’ नादान।
आहत मन किससे कहे, तात-मात महमान।।
2
राज़ी जब बीवी मियां क़ाज़ी का क्या काम।
मंदिर, वेदी, शादियां, सपने सभी तमाम।।
3
तुमको कुछ आता नहीं, जब बोले संतान।
आँखें बोलीं नीर से, क्यों बहता शैतान ।।
4
बाहर-बाहर से हँसे, रोता हर इंसान।
यह ऐसा वो दर्द है, पीता हर “भगवान”।।
5
हम तो चले विदेश को, देखेंगे निज लाल।
पता नहीं क्या लौटकर, होगा वही मलाल।।
सूर्यकांत