कटी हुई नाक।
बनारस की एक गली में लोगों की भीड़ जमा थी। भीड़ कौतूहल से गली के एक कोने में पड़ी वस्तु की तरफ देख रही थी। पर उसके करीब कोई डर के मारे नहीं जा रहा था। अलबत्ता खुसुर पुसुर जरूर चल रही थी। सब लोग अपने अपने कयास लगा रहे थे। तभी उस गली में एक औघड़ बाबा पहुंचे । वे शायद कहीं जा रहे थे पर भीड़ देखकर रुक गए। औघड़ बाबा को देख भीड़ दो फाड़ हो गयी।
औघड़ बाबा : काहे इतनी भीड़ लगाए हो सब लोग ?
भीड़ : बाबा वहां एक कटी नाक जैसी कोई चीज पड़ी है , पर न तो उसमें रक्त है न ही वो मलिन हुई है , न वहां कोई मक्खी ही भिनभिना रही है , इसलिए हम लोग डरे हुए हैं , और उसके समीप नहीं जा रहे।
औघड़ : बच्चों घबराने की कौनो आवश्यकता नहीँ , हम जाकर देखते हैं।
बाबा उस कटी नाक के पास पहुचें और उसे देखते ही हो हो करके अट्टहास करने लगे। भीड़ औघड़ का ये औघड़ रूप देखकर घबरा गई।
भीड़ : बाबा आप इस तरह अट्टहास क्यों कर रहे हैं।
औघड़ : क्योंकि मुझे इस कटी नाक का रहस्य मालूम पड़ गया है।
भीड़ : बाबा यदि उचित समझें तो हमे भी अवगत कराएं।
औघड़ : ठीक है बच्चा लोग , मैं इशारों में कहूंगा तुम समझ लेना।
भीड़ समेवत स्वर में : जैसी आपकी आज्ञा बाबा जी।
औघड़ : कुछ दिन पहले यहां एक चमत्कारी पुरुष काशी वालों का आशीर्वाद लेने आया था।
भीड़ : हाँ बाबा हाँ।
औघड़ : उस व्यक्ति के ख़िलाफ एक खानदानी संभ्रांत महिला ने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। जिसकी नाक के बहुत चर्चे थे। इससे मिलती है , उससे मिलती है।
भीड़ : सत्य वचन बाबा जी।
औघड़ : उस चमत्कारी पुरुष ने काशी की सड़कों पर खुली जीप में खड़े होकर , अपनी सुरक्षा की चिंता किये बगैर आप लोगों के आशीर्वाद के लिए घण्टों मेहनत की थी।
भीड़ : सौ प्रतिशत सही बाबा जी।
औघड़ : उस शक्ति प्रदर्शन को देखकर वह खानदानी संभ्रात महिला काशी छोड़कर भाग खड़ी थी।
भीड़ : नमन है आपको।
औघड़ : जब वह भाग रही थी तब काशी वालों की वक्र दृष्टि उस पर पड़ी और उसकी नाक काट कर गिर पड़ी।
भीड़ सहमे स्वर में : आपका कथन सही ही होगा ,पर हम अकिंचन मनुष्यो को एकाधिक सवाल परेशान कर रहे हैं।
औघड़ : प्रश्न प्रस्तुत करो।
भीड़ : पहली बात तो की हम काशी वालों में क्या इतनी शक्ति है , दूसरी बात ये नाक किसी मुख्य सड़क के बजाय यहां गली में क्यो पड़ी है ?
औघड़ : तुम काशी वाले सैकडों साल से महादेव की छत्रछाया में रहते आये हो तो इतना सामर्थ्य तुम लोगों में भी आ गया है कि यदि सामूहिक रूप से किसी की तरफ वक्रदृष्टि से देख लो तो उसका अहित हो जाये। दूसरी बात गली में इसलिये की नाक को कोई नुकसान नहीं पहुँचे। मुख्य सड़क पर गिरी होती तो अब तक चकनाचूर हो गयी होती।
भीड़ : जै जै कार बाबा जी , पर क्या अब वो बिना नाक के घूम रही है ?
औघड़ : नहीं । तुम सब लोग शिव के नगरी में रहते हो पर उनके स्वभाव से परिचित नहीं हो। वे बड़े दयालु हैं। जब तक वो स्त्री काशी छेत्र में थी बिना नाक के थी , तुमको पता नहीं चला क्योंकि वो अपने निजी वाहन में अपना चेहरा छुपा कर निकल गयी पर जैसे ही वह काशी से बाहर गयी देवो के देव महादेव ने उसे उसकी नाक पुनः वापस कर दी।
भीड़ : बाबा जी तो अब इसका क्या किया जाय ?
औघड़ : इसे विधि पूर्वक गंगा माता को समर्पित कर दो।
इतना कहकर औघड़ बाबा अंतर्ध्यान हो गए।