कजरी
रिमझिम बरसेला सवनवा कब सजनवा अइहें ना
कब सजनवा अइहें ना कब सजनवा अइहें ना
भींजे तनवा साथे मनवा कब सजनवा अइहें ना
रिमझिम बरसेला…….
परसों आइब कहि के गइलें
बरसों बीतल नाहीं अइलें रामा
अरे रामा सून भइल अंगनवाँ कब सजनवा अइहें ना
रिमझिम बरसेला……..
दियना असरा के अस बूतल
देहियाँ काँटा जइसन सूखल रामा
अरे रामा तड़पेला परनवा कब सजनवा अइहें ना
रिमझिम बरसेला……….
एह सावन में जो आ जइहें
हम जिनगी ‘असीम’ पा जइबें रामा
अरे रामा करबें हरि दरसनवा जब सजनवा अइहें ना
रिमझिम बरसेला……..
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’