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18 Sep 2024 · 1 min read

कच्चे रंग समय के संग…!

#लघुकविता-
■ परिवर्तन के पैरोकार।
【प्रणय प्रभात】
कच्चे रंग समय के संग बदलते रहते हैं,
यदि सुन पाओ तो सुनना बस ये कहते हैं।
परिवर्तन आवश्यक है सब को भाता है,
हर बार नया कुछ करने को उकसाता है।
दीवारों से आंगन तक खिल खिल जाते हैं,
कुछ नए माँडने जब खुल कर मुस्काते हैं।
जीवन की सारी ऊब दूर हो जाती है,
कच्चे रंगों की महिमा को बतलाती है।
पक्कों की तुलना में मत बेकार समझ।
कच्चे, परिवर्तन के पैरोकार समझ।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
#आत्मकथ्य-
हर एक के दो पहलू होते हैं।किसी भी एक को हल्का कर के आंकना वैचारिक अज्ञानता या बौद्धिक संकीर्णता है। कविता में बस यही बताने का प्रयास किया गया है।
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

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