कचनार
कचनार
लहलहाते पत्तों से सजे
विहॅस रही कलियों
अधखिले पुष्पों को
अपने शाखाओं में
हार के तरह धारण किये
वसन्त के स्वागत के लिए
आतुर है
कचनार।
शीतल वायु,गुनगनी धूप
से नये जीवन की धारा
प्रवाहित करने के लिए
प्रकृति की सुषमा
निखरेगी गुलाबी पुष्पों से।
वासंती हवा में सर्वांग सराबोर
कचनार आतुर है अपने
सौंदर्य से प्रकृति की छटा
बिखेरने के एक प्रबल पात्र
के तरह
सबल आधार।
ज्यों -ज्यों रससिक्त कलियां
प्रमोद के उन्मुक्त गगन में
तादात्म्य स्थापित करती हैं
हॅसती हैं,नये कलेवर में
सांस लेती हैं
कलियों से पुष्प बन जाना
सहज नहीं है।
सींचता है बागवान
अपने कठिन श्रम से,
नेह की
पावन धार ।
गुलाबी फूल जब खिलते हैं
बढ़ता है सौंदर्य
खिलता कोविदार।
वसन्त के स्वागत में
अपने हर्ष से
गाता है गीत, करता है स्वागत
प्यारा कचनार।।
**मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
31मार्च 2024
रविवार