कई वर्ष के बाद
कई वर्ष के बाद
कई वर्ष के बाद डाकिया,
चिट्ठी लाया है,
माँ की प्यार भरी कुछ बातें,
मिट्ठी लाया है |
पोस्टकार्ड लिखने की आदत,
कब की छूट गई थी,
संस्कार की पत्र पेटिका,
मन से टूट गई थी,
माँ जिस हुक्के से पीती थी,
रोज़ तमाकू, उसी चिलम की,
गिट्टी लाया है |
पता नहीं किस देश गई थी,
गाँवों की वह भाषा,
एक कहानी बचपन वाली,
ममता की परिभाषा,
उपले पर सेंकी आटे की
स्वादयुक्त, सतुआ वाली वह
लिट्टी लाया है |
संबंधों में स्वार्थपरकता
के जलते हैं चूल्हे,
संवादों के संकल्पों के
टूट चुके हैं कूल्हे,
उम्मीदों की पत्राली पर,
जन्मभूमि की सोंधी-सोंधी,
मिट्टी लाया है |
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ