कईएक पहलू जीवन के
कईएक पहलू जीवन के….??
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निश्तेज चेहरा, आंखें धसी हुई, शरीर का ढांचा जैसे कोई नरकंकाल यही हाल था उस वक्त बृजकिशोर का।
बृजकिशोर बलिष्ट शरीर जैसे कोई बडीबिल्डर,
गोरा चिट्टा , लम्बा छरहरा बदन, सुन्दर सा भरा पुरा, लालिमा लिया हुआ चेहरा किन्तु स्वभाव से कुटिल , कपटी , घमंडी।
गांव का एक अति संपन्न व दबंग ब्यक्ति जिसके प्रभाव से गांव का हर एक ब्यक्ति सहमा रहता।
किसी का कुछ भी बुरा हो उसमें बृजकिशोर का हाथ अवश्य ही रहता….अपने से उम्र में काफी बड़े से बड़ा ब्यक्ति को भी अपमानित करने में कभी आगे पीछे नहीं सोचता, अपने लाभ के आगे दुसरे की कितनी भी बड़ी हानी क्यों न हो….. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
बृजकिशोर के दबंगई के आगे पूरा का पूरा गांव भयभीत रहता …….कोई भी उससे ऊची आवाज में बात करने की जहमत नहीं करता…यहाँ तक की गांव के बच्चे भी उसके समक्ष जाने से कतराते थे।
अक्सर ये देखा जाता है कि जहाँ अन्याय, अत्याचार, कुविचार, दूरब्यवहार का बोलबाला होता है वहाँ विनाश काले विपरीत बुद्धि की झलक अक्सर दिखती है ।
बृजकिशोर को यही लगता था कि ….आज उसकी जो स्थिति है यह ऐसे ही सदैव रहेगी इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा….वह जब जैसा चाहेगा हमेशा वैसा ही होता रहेगा। किन्तु कुछ चीजें अपने हाथ नहीं होती ……..इनमें सबसे अहम है ईश्वरीय प्रकोप।
समर उसी गांव के पुरोहित का सीधासाधा, सभ्य, संस्कारी लड़का , पढाई लिखाई में कुशाग्रबुद्धि, पढने के लिए पिछले दस वर्षों से गांव से दुर एक बड़े शहर में रहता था…. समर का रूममेट निखिल जो उसका बहुत ही अच्छा दोस्त था किसी अनजान लड़की के प्यार में फस कर पढाई लिखाई से विमुख होता चला गया……समर ने बहुत समझाया उसे……अपने दोस्ती की कसम थी….माँ बाप के भरोसे का एहसास कराने का प्रयत्न किया किन्तु निखिल नहीं माना….वह उस लड़की के प्यार में पूर्णतः डुबता चला गया …..और अचानक एक दिन उसे पता चला कि लड़की ने किसी और लड़के से शादी कर ली …..निखिल इस सदमे को झेल न सका और जहर पी गया।
समर उसे आनन फानन में अस्पताल लेकर आया जहाँ डॉक्टर उसे बचाने का प्रयास करने लगे ।
समर बाहर बैठकर अपने दोस्त के कुशल जीवन की कामना करने लगा तभी उसे अन्दर किसी वार्ड से निकलते एक महिला को देखा …..देखते ही पहचान गया वह बृजकिशोर की पत्नी सरीता देवी थीं….वह उनके पास गया चरण स्पर्श कर कर पूछा…..भाभी यहाँ कैसे ?
सरीता देवी रूआंसी होकर मरी आवाज में धीरे से बोलीं…..समर बाबू आपके भैयाजी का तबीयत खराब है उन्हें ही लेकर यहाँ भर्ती हूँ ….अभी डॉक्टर ने कुछ इंजेक्शन लिखे है वहीं लेने जा रही हूँ।
समर उनसे वार्ड व बेड नंबर पूछा और चल दिया बृजकिशोर से मिलने ….जाते वक्त उसके मन में पूर्व में घटित बहुत सारी घटनाएं किसी चलचित्र की भांती चलने लगी कारण कईएक बार बृजकिशोर ने उसका एवं उसके पिता का अपमान किया था….किन्तु मानव धर्म समझ मानवीयता के नाते उसके पग रुके नहीं …..वह चलता चला गया वार्ड नंबर पांच, बेड नंबर उन्नीस के पास।
एक बार तो उसे अपने आंखों पर यकिन नहीं हुआ
वह जो देख रहा है क्या यह वाकई हकीकत है।………
वह ब्यक्ति जिसके तनाशाहीयत के डर से गांव का चप्पा – चप्पा, कोना-कोना भयभीत रहता आज उसकी यह दशा देख समर उद्विग्न हो उठा
बृजकिशोर ने समर को देखते ही पहचान लिया ..।
उसकी आंखों से अश्रु की धारा बह निकली
समर से रहा न गया पुछ ही बैठा….भैया आखिर आपका यह हाल कैसे ?
बृजकिशोर कुछ पल खामोश रहने के बाद निरीह भाव से संयत स्वर में बोल पड़े……समर ……मेरे भाई नीयति नजाने क्या क्या खेल दिखाती है और हम तुक्ष्य मानव नियती के खेल को बीना समझे बीना जाने मद् में उन्मत्त बस यही समझते हैं कि आज जैसा है कल भी वैसा ही रहेगा, हम जो चाहेंगे, जैसा चाहेंगे ……सब वैसा ही होगा परन्तु जब नीयति अपना खेल दिखाना प्रारम्भ करती है तब जाकर समझ आता है हम कितने तुक्ष्य कितने बेबस है…..हमारी सोच कितनी गलत थी।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी घटित हो रहा है मैं अपने घमंड में चूर , मद् में उन्मत्त नित्य ही लोगों पर अत्याचार करता रहा अपने से श्रेष्ठ जनों का भी अहित दर अहित, अपमान दर अपमान करता रहा किन्तु अपने कुकृत्यों के दूरगामी दूस्परिणाम के नीहित कभी नहीं सोचा …जिसका परिणाम मुझे कब कर्क रोग (कैंसर) लग गया पता ही नहीं चला …..अपने सामर्थ्य के अनुसार मैंने इस रोग का इलाज कराने का हर संभव प्रयत्न किया किन्तु कोई लाभ न हुआ ।
नियती की मार जैसे ही मुझ पर पड़ी कल तक मेरे पीछे-पीछे डोलने वाला हर एक इंसान एक एक कर साथ छोड़ गया…..पिछले छः महीने से इस अस्पताल में पड़ा हूँ किन्तु गांव का एक भी ब्यक्ति यहाँ तक की मेरा छोटा भाई भी एक पल के लिये ही सही मुझे देखने तक नहीं आया ….यहाँ तक कि जितने भी सगे – संबंधी थे जो गाहेबगाहे मदद के लिए मेरे पास हाजरी दिया करते थे उन सबों ने भी मुह फेर लिया…..। अब तो डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया है…..
कुछ क्षण रुकने के बाद….
समर शायद यही मेरे द्वारा किए कुकर्मों की सजा है।
समर निशब्द बृजकिशोर को सुनता रहा जैसे आकलन कर रहा हो जीवन में घटित होने वाले अनेकानेक पहलूओं की,….. समझने का प्रयत्न कर रहा हो नियती के क्रूर खेल को, समर आकलन कर रहा हो धर्मशास्त्र में वर्णित……, बड़े- बुजुर्गों द्वारा कहे गये तथाकथित बातों का जिसमें पिछले जन्म में किए बुरे कर्मों का कुफल इस जन्म एवं इस जन्म में किऐ कुकर्मों या सुकर्मों का फल अगले जन्म में मिलने की बात कही गई है।……….किन्तु यहाँ तो सबकुछ इसी जन्म में भुगतान पड़ रहा है।
बृजकिशोर की वर्तमान दशा देखकर उसे वो सारे के सारे उपदेश मिथ्या लगने लगे……बहुत देर तक …..
गुम रहने के उपरांत समर बृजकिशोर से मुखातिब हुआ…..
भैया आज की जो आपकी वर्तमान दशा है उसके बाद अब आप जिन्दगी को कैसे देखते है …..अब आपकी जिन्दगी के समब्द्ध क्या नजरीया है…….?
बृजकिशोर कुछ पल खामोश मुद्रा में वैसे ही छत को घूरते रहे जैसे अबतक ब्यतीत संपूर्ण जीवन चक्र का मुआयना कर रहे हो …..चेहरे पर दर्द की तमाम लकीरें खींच गई।
बोले….. देखो समर इस जीवन के इतने पहलू है जिनका वर्णन कर पाना शायद संभव ना हो किन्तु अबतक के ब्यतीत पलों को देखने और जानने के बाद इतना तो कह ही सकते है कि जबतक जीवन है सब में प्रेम बाटते चलो, आपसी प्रेम शायद आपको जीने का कुछ और पल प्रदान कर दे। प्रेम हीं वह परम दुर्लभ तत्व है जो सदैव आपके साथ व मरणोपरांत आपके बाद भी आपके नाम को इस जहा में अमर रखता है।
कुछ ऐसा ना करो जिससे बाद में पछताने के सिवाय और कुछ भी न हो आपके पास…….अब हमें हीं देख लो जब सर्व सामर्थ्यवान थे ……जब मेरे चारो तरफ लोगों का हुजूम था तब हम नफरत बाटते रहे और आज जब जीवन को समझने के बाद मेरे हृदय में प्रेम जागृत हुआ तब मेरे आस पास कोई नहीं है।
आज मैं सबसे , उन एक एक लोगों से जिनका मैने जानबूझकर अहित किया या दिल दुखाया है उन तमाम लोगों से अपने द्वारा किए कुकर्मों की क्षमायाचना करना चाहता हूँ किन्तु ईश्वर ने मुझे इतना लाचार कर दिया कि मैं उन लोगों के पास जा भी नहीं सकता। आज समझ आई ईश्वरीय सत्ता को चैलेंज करना जीवन में कितना भारी पड़ता है……खुद के जीवन पर मुझे एक मुहावरा याद आता है “पीछे पछताये होत क्या जब चिडिय़ा चूग गई खेत।
समर हतप्रद बृजकिशोर के बातों को सुनता रहा आज पहली बार उसे बृजकिशोर के अंदर का एक कोमल हृदय, प्रेम से परिपूर्ण वह इंसान नजर आ रहा थो जो इतने वर्षों तक उसके अहम के अंधियारे में कही छुप सा गया था, उनके इस हालात पर तरस भी आ रहा था किन्तु वह अब कुछ भी तो नहीं कर सकता था ।….
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”