” कंप्यूटर को हम सलूट करते हैं “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हम नहीं कहते हैं कि हम कुछ लिखते हैं ….पर बहुत कुछ लिखने को जी चाहता है !… हमारी निगाहें उन तमाम विषयों पर रहती हैं जो हमारे इर्द गिर्द मंडराती रहती हैं !…. कुछ विषयों की गुथियाँ अभी तक उलझी पड़ी हैं ….,कुछ नयी घटनाएँ आये दिनों घटती रहतीं हैं और कुछ आने वाली घटनाओं का आभास होने लगता है !…. आये गए दिनों में, हम अनेकों साहित्यकारों ,लेखकों ,कविओं ,दार्शनिकों और विचारकों के कृतिओं के ज्ञान गंगा के शीतल धारा में डुबकियाँ लगाने लगते हैं !..कभी -कभी किन्हीं के मूक तश्वीरें भी कुछ ऐसी = बातें छोड़ जाती हैं जिन पर किताबें भी लिखीं जा सकती हैं ! ….और… तो… और …हमारी कल्पना की उड़ानें इस तीब्रता से क्षितिज के छोर को छूना चाहती है …कि शायद ही कोई मानव निर्मित यान भी इनकी बराबरी कर ले ! ….सूर्य की किरणें भी जहाँ नहीं पहुँच पाती…. वहां कवि की कल्पना चुटकी बजाते पहुँच जाती है ! ..और कल्पना मात्र कवि की ही नहीं …कल्पना किसी की भी हो सकती है ! हमारे करीब ही विषयों का भंडार होता है !…. श्रृंगारिक परिधानों से सजाना हमारा काम होता है ! आकृतियाँ के अनुरूप ही हमें दुल्हन को आकर्षित बनाना पड़ता है ! ……हम भी इन प्रयासों में लगे है कि तमाम विषयों को यथा संभव अपने ह्रदय में उतार लें और उन सबको एक सकारात्मक परिधानों में सजा कर कोई मूर्त रूप दें ….! हालाँकि यह लिखने की प्रवृति हमारी कभी भी नहीं रही …शायद हम भी कूपमंडूक ही बने रहते ..पर आज हम कृतज्ञ हैं अपने फेसबुक मित्रों के जिनके कृतिओं ने मुझे भी विद्यार्थी बनने का अवसर दिया …साथ ही साथ हम इस आधुनिक यन्त्र को सलूट करते हैं जिसने हमें इस काबिल बनाया कि छोटे छोटे विषयों पर कल्पना के पर लगा सकें -सबको मेरी शुभकामना !…..इति !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
दुमका