कंगाली में आटा गीला
“आपदा में अवसर” श्लोगन
सुनने में कितना प्यारा लगता है.
नीचे कहानी में पढ़कर देख लो.
दिनभर के काम से हारे थके मांदे रौनक अपनी बीवी और तीन बच्चों के साथ जब वह झुग्गी पर पहुंचता है.
एक तो पीने के पानी की व्यवस्था का अभाव,
ऊपर से बिजली का कोई बंदोबस्त नहीं,
खुले में शौच जाने जैसी असुविधाएं जैसे उसके जीवन को और जटिल बना रही थी,
बिमारी का दौर साथ में,
मजदूरी का अभाव,
ऊपर से मालिक का किराए का दबाव
जैसे उसे घर बोझ सा लगने लगा हो,
इस बीच रौनक घर पहुंच कर देखता है झुग्गी मालिक ने पानी के घडे, नहाने धोने के बर्तन बिखेर कर, किराया लेने का दबाव बनाया,
रौनक जिसको इसकी भनक भी नहीं थी,
कि मालिक आज ऐसा करेगा,
वरन्
आज दिन की प्राप्त दिहाड़ी से वह रसोई का सामान
सौ ग्राम सरसों का तेल = बीस रुपये,
प्याज एक पाव = बीस रुपये,
लहसुन एक पाव = पचास रूपये, टमाटर एक पाव = बीस रूपये,
पाँच किलो आटा = दो सो रुपये, लकडी पांच किलो = पचास रूपये, खर्च करके न आया होता,
लगभग पाँच सौ रूपये किराया लौटा देता,
खैर हजार मिन्नतों के बाद मालिक मान गया,
और दो दिन की मोहलत दे दी,
सभी कामकाज बिमारी की वजह से रुक चुके थे, दिहाड़ी मजदूरी मिल नहीं रही थी,
वह एक शिक्षित बेरोजगार मजदूर होने के कारण,
हुनर की कोई कमी नहीं थी,
अचानक उसे सैटरिंग यानि बीम खोलने की मजदूरी मिल गई,
वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठा, खाना दाना बनाया, और सुबह होने से पहले ही चल दिया,साथ में संगिनी और तीन बच्चे.
तेज गर्मी और से चिलचिलाती धूप सीमेंट की धूल.. पीने को गर्म पानी,
अचानक लगातार छींक आना,
कण्ठ में दर्द, आँखें लाल,बदन में दर्द, शाम होने तक जैसे किराए की जिम्मेदारी रौनक की हिम्मत, बाँधे बनाये हुए थी,
काम पूरा हो गया,
लेकिन मालिक नहीं पहुंचा,
उसके इंतजार में रात के नौ बज गए.
मालिक आया, आकर कहने लगा,
ये पलेट बाहर और इकट्ठा करो, तब पैसे मिलेंगे,
रौनक ने कहा,
अब आप पैसा दे दो,
सुबह आकर कर देंगे,
वैसे भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है, मालिक ने कहा, तुम्हें कुछ नहीं होता, बहाने मत बनाओ और काम करो,
वैसे भी पलेट इकट्ठा करने की बात तो हुई नहीं थी,
तब तो मालिक को जैसे साँप सूँघ गया हो,
तभी एक पी.सी.आर आकर रुकी.
और पैसे दिलवाये,
साथ में
रौनक के चेहरे को देखकर, उसे आर.टी.पी.सी.आर. टैस्ट के लिए
सामान्य अस्पताल बुलाया.
रौनक ने एक लम्बी ठंडी साँस ली, और घर पहुंच गया.
झुग्गी मालिक का किराया पहुंचा दिया,
और कंफेक्शनरी की दुकान से एक थैली दूध लिया और कुछ पैसे से काली-मिर्च, सौंठ, इलायची और दालचीनी पाउडर लिया,
और गर्मागर्म पेय बनाकर चद्दर ढाँपकर सो गया.
सुबह गिलोय और पपीते के पत्र का रस ऊपर से एक चम्मच शहद चाटकर फिर विश्राम किया,
चूंकि रौनक शिक्षित बेरोजगार था,
इसलिए वह सामान्य अस्पताल पहुंच गया , टेस्ट करवाने, अपना मोबाइल नंबर तो दर्ज करवा दिया,
लेकिन झुग्गी पर बिजली न होने के कारण उसे चार्ज न कर सका,सरकारी अस्पताल से मिली कुछ नीले पत्ते की गोलियां पैरासिटामोल,
रौनक की पत्नी वा बच्चों ने खा ली, क्योंकि उन्हें भी बुखार हो चुका था,
पांच दिन बाद रौनक की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी थी,
बस सकून की बात यह थी, की उसे खाँसी और साँस लेने में दिक्कत नहीं बढी, और सामूहिक रुप से एक झुग्गी में रहते हुए भी परिवार सकुशल क्षेम था, खाने के बंदोबस्त के लिए फिर वही घोडे.. और वे ही मैदान.
आपदा में अवसर कैसे बनाए.
इस बार मन की बात में ये भी बताने का कष्ट करें,
.
शिक्षा:- इस कहानी में रौनक और उसका परिवार तो सकुशल रहा.
लेकिन कितने बंधुआ मजदूरों को समस्या आई होगी.
समर्थ व्यक्ति को असमर्थ की मदद करनी चाहिए.