कंगना कि ललकार और बॉलीवुड की हिंदू घृणा का कारण और विश्लेषण
कहा जाता है कि भारत में हर साल करीब 1000 फिल्में रिलिज होती हैं जो विभिन्न भाषाओं कि होती हैं पर एक भाषा है जो देश में सर्वाधिक बोली जाती है और वो है ‘हिंदी’ | इस भाषा की फिल्में बनाने वाली ईकाइयों को एक रुप में बॉलीवुड कहा जाता हैं | यहां तरह तरह की फिल्में बनती हैं और बनाते हैं कुछ खास फिल्मी घराने जिन्हे बैनर भी कहा जाता है जैसे आपने नाम सुना होगा कपुर्स , खांस , चोपडा़स आदि | और इन फिल्मों में जो मुख्य अभिनेता या अभिनेत्री होती हैं अमुमन इन्ही घरानों के बच्चे होते हैं “यहां आप इस बात का ध्यान रखें के यहां फिल्मों कि बात हो रही है टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों की नही” |
हां यह भी संभव है कि कभी कोई गैर फिल्मी परिवार का अभिनेता या अभिनेत्री भी फिल्मों में मुख्य भुमिका में दिख सकते है मगर यह बहुत कम देखने को मिलता है | और इन गैर फिल्मी परिवार के अभिनेताओं और अभिनेत्रीयों को बॉलीवुड में एक शब्द से संबोधित किया जाता है वो है ‘आउटसाइडर्स’ , जिसका मतलब है बाहर से आया हुआ | ये कुछ इसी तरह का संबोधन है जैसे आप ये कह रहे हो कि तुम में और मुझमें बहुत अंतर है | यदि आप कहना चोहें तो बॉलीवुड को परिवारवाद का सबसे अच्छा उदाहरण कह सकते हैं | और आज कंगना रनोत जो सुशांत के लिए इंसाफ की मांग कर रहीं हैं और लगातार मुंबई पुलिस के महाराष्ट सरकार की मंसा पर सवाल उठा रहीं हैं बॉलीवुड में ड्रग्स के चलन की बात पुरजोर तरिके से रख रहीं हैं वह इसे परिवारवाद पर प्रहार कि तरह देखा जा रहा है | और जब से सुशांत के हत्या कि जांच सीबीआई को गयी है तब से महाराष्ट की सरकार कंगना से बदले कि कार्यवाही कर रहें हैं और इसी कडी़ में 9 सितंबर को कंगना का ऑफिस तोडा़ जा चुका है और महाराष्ट सरकार के इशारे पर बीएमसी की यह कार्यवाही बहुत निंदनीय हैं |
बॉलीवुड कि ज्यातर फिल्मों कि कहानी में प्रेम अलगाव और हिंसा दिखाई जाती है पर इसमें भी जो मुख्य रुप से एक चीज दिखाई जाती है वो है हिन्दु धर्म और उसके प्रति घृणा | इस तथ्य को समझने के लिए आपको अपने मस्तिष्क पर थोडा़ जोर डालना होगा और ये सोचना होगा के क्या आपने ये दृश्य नही देखा जहां एक आदमी माथे पर चंदन लगाए एक युवती का शारिरीक शोषण करने कि कोशिश कर रहा है , कोई साधु कहीं एक महिला का बलात्कार कर रहा है , एक अमिर साहुकार है और वह बच्चों से काम करवा रहा है या किसी विधवा लाचार महिला से पैसे उधार देने के बदले कंगन गिरवी रखवा रहा है और वही एक खान चाचा है जो बच्चें को खाना खिला रहा है , कोई अब्दुल भाई है जो गरिबों का मुफ्त में इलाज कर रहा है | यह सारे दृश्य हिंदी फिल्मों में आम बात है और यही वो तरिका है जिससे लगातार हिन्दु धर्म का अत्याचारी और धोखेवाज तथा एक मजहब को महान प्रस्तुत करने कि कोशिश हो रही है |
अब आप स्वयं सोचकर देखें कि इन दृश्यों मे से कितने दृश्य सही लगते हैं और कितने गलत ? पर फिर भी लगातार ऐसे दृश्य दिखाए जा रहें हैं | और वही दुसरी तरफ आतंकवाद , जबरन धर्मांतरण और लव जिहाद आज के समाज की सच्चाई हैं | पर ये दृश्य फिल्मों और वेब सिरिजों से गायब मिलते हैं |
हम यदि इसी वर्ष की बात करें तो 2020 में हि ऐसी कई फिल्में और बेव सिरिज हैं जो हिन्दु घृणा से भरे पडे़ हैं जैसे एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई बेव सिरिज ‘पाताल लोक’ , डिज्नी प्लस हाटस्टार पर रिलिज फिल्म सड़क 2 , एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई बेव सिरिज ‘आश्रम’ आदि | ये तो बस कुछ ही नाम हैं और ऐसी न जाने कितनी चीजे रोज युवाओ के सामने आ रही हैं और युवा इन्हे ही देखकर अपना नजरिया हिन्दु धर्म के बारे में बनाने के लिए विवश हैं क्योंकि उनके पास सही हिन्दुत्व की अवधारणा पहुच ही नही रही है |
अब सवाल ये खडा़ होता है कि ऐसा किया क्यों जा रहा है तो इसकी बहुत सी बजहें हो सकती हैं | पहला तो ये है कि यह एक तरह के तुष्टीकरण की राजनीति है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी से प्रभावित लोग करते हैं और दुसरी और सबसे बडी़ वजय है मजहबी कारण , क्योंकि सत्तर से अस्सी प्रतिशत बॉलीवुड एक विशेष मजहब को मानने वाला है तो उनकी विचारधारा ये है कि हम संख्यां में पुरे देश में हिन्दुओ से कम हैं और हम गजवा-ए-हिंद जो इनका वर्षों पुराना ख्वाब है कर नही सकते तो हमें इन्हें इसी तरह से निचा दिखाते रहना है ताकि इनकी युवा पीढी़ स्वयं ही अपने धर्म से शर्मिंदा हो और खुद ही अपना धर्म छोड़कर उन्हीं के मजहब को अपना ले | और तिसरी वजय हिन्दुओ का अत्याधिक उदासिन होना भी हो सकता है जिससे इन्हे इस बात का विश्वास है कि चाहे हम हिन्दु धर्म के बारे में कुछ भी दिखा दें कोई हमसे सवाल पुछनेवाला नही है |