कंक्रीट के इस जॅगल में मेरा छोटा गाॅव कहां है।
कंक्रीट के इस जंगल में, मेरा छोटा गांव कहां है?
सोन चिरैया पूछ रही है रहने को अब ठांव कहां है।
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ऊंचे -ऊंचे इन भवनों से
दुनिया भी इक दिन ऊबेगी।
दुनिया की यह जिद दुनिया को
लेकर के ही अब डूबेगी।
ढूंढेगा इंंसा खुद खुद को,ढूंढ न पाये पांव कहां है।
कंक्रीट के इस जंगल में मेरा छोटा गांव कहां है।।
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आपाधापी का आलम है,
सांसे कुछ पल की दिखतीं।
कुछ लोगों का उस पर कब्जा,
सांसें भी गिरवीं दिखतीं।।
कोयल के घर पर कब्जा है,कौवै की ही कांव यहां है।
कंक्रीट के इस जंगल में, मेरा छोटा गाॅव कहां है।
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लूट लूट कर नीरव-राजा
धन का नित संचय करते हैं।
मेहनतकश इंसान सदा ही
दुनिया में भूखे मरते हैं।
धन के लोभी मौज ले रहे, मजदूरों को छाॅव कहां है।
कंक्रीट के इस जॅगल में, मेरा छोटा गाॅव कहां है।
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