औलाद का सुख
डॉक्टर साहब के घर के पास देर रात पुलिस की गाड़ी को देखकर लोग आश्चर्य में थे और कौतूक दृष्टि से देख रहे थे कि जब इस मकान में कोई नहीं रहता है और दो साल से खाली पड़ा है तो फिर क्यों पुलिस यहाॅं इतनी रात में खड़ी है और आखिर कर क्या रही है।अब तो इस खाली मकान में भूत ही रहता ह़ोगा। क्या पुलिस यहाॅं भूत से मिलने दल बल लेकर आई है। डॉक्टर साहब के मकान से मात्र दो किलोमीटर दूर के सिनेमा हॉल में नाइट शो के समाप्त होने के बाद फिल्म का गाना गुनगुनाते और बीड़ी का धुआं उड़ाते हुए वापस घर जाते लोगों की नजर जब पुलिस की गाड़ी पर पड़ी तो तरह-तरह के प्रश्न उनके दिमाग में उठने लगे। कुछ लोग तो अनदेखा कर आगे बढ़ते गए लेकिन कुछ खोजी टाईप के लोग मिट्टी कोड़ कर भी सच से पर्दा हटाना चाह रहे थे। तब अचानक पता चला कि अमेरिका से डॉक्टर साहब के बेटा ने पुलिस को खबर किया है कि उसके घर में चोरी हो रही है। उसके बेटा को अमेरिका में यह कैसे पता चल गया है कि घर में चोर घुसा है ? कोई तंत्र मंत्र जानता है क्या ? तब किसी ने कहा कि सीसी टीवी देखकर पुलिस को खबर किया है। एक आदमी बोला, घोर कलयुग आ गया है। ऐसा भी होता है क्या ? वहाॅं इतनी दूर में बैठ कर यहाॅं का सब बात देख लेगा। सच में ये तो एकदम गजब हो गया। बेचारे चोर को इस बात का तनिक भनक भी नहीं होगा। मकान को चारों ओर से पुलिस घेर ली और तीन चार पुलिस गेट के बगल वाले दीवार को तड़प कर अंदर घुस गई और निश्चिंत से चोरी कर रहे चोर को रंगे हाथ पकड़ कर थाना ले गई। चोर अभी तक हतप्रभ था, कितनी सावधानी से घर में घुसा था। किसी की नजर भी नहीं पड़ी थी, फिर पुलिस को कैसे खबर हो गई। चोर को पकड़े जाने के दुःख से अधिक चिन्ता इस रहस्य को जानने की ओर था।
एक सप्ताह के बाद डॉक्टर साहब के दोनों बेटे भी वहां पहुॅंच गये और घर बेचने के लिए प्रॉपर्टी डीलर से संपर्क स्थापित करना शुरू कर दिया। मकान काफी अच्छा और आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस था। इसलिए ग्राहक के लिए अधिक पापड़ बेलने की नौबत नहीं आई थी। प्रॉपर्टी डीलर ने आश्वस्त किया कि वह एक सप्ताह के अंदर अच्छा रेट पर मकान बेचवा देगा। वहीं मात्र तीन दिन में ही एक आदमी से बात हो गई और डॉक्टर साहब का मकान बिक गया। उतनी मेहनत से बनाये गये मकान के बेचे जाने पर दोनों बेटा में से किसी को भी रत्ती भर भी दुःख नहीं हुआ। मकान के मूल्य का रुपया लेने के बाद दोनों पुत्र सदा के लिए इस शहर से अपनी अंतिम निशानी को बेचकर जहाॅं उनका जन्म हुआ था जन्म से लेकर पढ़ाई हुई थी वापस अमेरिका चले गए। लोगों की स्मृति से गायब हो रहे डॉक्टर साहब अचानक मकान बिक जाने के बाद लोगों की स्मृति में अचानक फिर से वापस आ गए।
बरसों पहले इसी मोहल्ले में डॉक्टर साहब ने अपनी क्लीनिक खोली थी। शुरु शुरु में तो नया डॉक्टर होने की वजह से रोगियों का आना बहुत कम रहा लेकिन बाद में डॉक्टर साहब के अच्छे व्यवहार और इलाज से प्रैक्टिस एक अच्छी रफ्तार पकड़ ली थी। फिर डॉक्टर साहब को कभी पीछे मुड़कर देखने की नौबत नहीं आई थी। डॉक्टर साहब की शादी कम उम्र में हो गई थी और धीरे-धीरे डॉक्टर साहब दो बच्चों के पिता भी बन गए। उनकी पत्नी भी साक्षात लक्ष्मी की रूप थी। मिलनसार प्रवृत्ति की हॅंसने बोलने वाली महिला अपने व्यवहार के कारण पड़ोसियों के बीच काफी चर्चित थी। अपनी व्यस्तता के बाद भी डॉक्टर साहब ने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई कमी नहीं रहने दिया। सभी बच्चे शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे और इसके बाद घर पर भी ट्यूशन की व्यवस्था थी। देखते-देखते बच्चे बड़े हो गए और पढ़ने के क्रम में शहर से बाहर चले गए। घर में बच गए थे सिर्फ दो व्यक्ति डॉक्टर साहब और उनकी पत्नी। दिन भर डाक्टर साहब क्लीनिक में रहते और शाम में ही घर आ पाते थे और वो भी थके थके। घर में पूरा शाॅंति का वातावरण रहता था। डॉक्टर साहब की पत्नी भी इस तरह से घर में अकेले रहने के कारण चिड़चिड़ी हो गई थी। बच्चे अब सिर्फ त्यौहार या छुट्टियों में ही घर आ पाते थे। तब फिर घर की रौनक बढ़ जाती थी पर यह भी कितने दिन बच्चों के जाने के बाद फिर वही नहीं भंग होने वाली शांति व्याप्त हो जाती घर में। बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे थे। बड़ा बेटा डॉक्टर और छोटा बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। बड़ा बेटा का फाइनल रिजल्ट आने के बाद डॉक्टर साहब ने बड़े बेटे की शादी अच्छे घर को देखकर अपनी जात बिरादरी में करवा दिया। शादी के बाद बेटा आगे का कोर्स करने के लिए विदेश चला गया और पूरे एक वर्ष के बाद वापस आया। इस बार पंद्रह दिन यहाॅं रह कर अपनी पत्नी को भी साथ ले गया। डॉक्टर साहब पूरे खुश थे कि उसका एक बेटा विदेश में रहता है और गर्व से सीना चौड़ा कर चलते थे कि उनका शौक पूरा हो गया। अब दूसरा बेटा का भी कोर्स समाप्त हो गया था और एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब के लिए कैम्पस सेलेक्शन भी हो गया। कुछ दिनों के बाद कंपनी ने उसे अपने विदेश के ब्रांच के लिए ऑफर दिया।डॉक्टर साहब की सहमति से छोटा लड़का भी अपनी नौकरी पर विदेश चला गया। अब फिर घर पर रह गए कुल जमा दो व्यक्ति। शुरू शुरू में दोनों बच्चों के विदेश जाने पर डॉक्टर साहब अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे इसलिए उपजी हुई परिस्थिति और एकांकी जीवन से समझौता कर रह रहे थे।अब दोनों पति पत्नी की उम्र भी बढ़ रही थी इसके बावजूद भी पत्नी डॉक्टर साहब को समय पर तैयार करके क्लिनिक भेज देती थी। डॉक्टर साहब के क्लीनिक जाने के बाद उनकी पत्नी का घर में दिन काटना मुश्किल हो जाता था। टी वी सीरियल देखते देखते मन उब जाता था।कहते हैं आदमी ही घर में लक्ष्मी है अगर घर में आदमी नहीं हो बच्चे की किलकारी रोना हॅंसना नहीं सुनाई पड़े तो भूत बंगला से कम थोड़े ही है घर। दोनों बच्चों के विदेश चले जाने का पश्चाताप अब दोनों पति पत्नी को होने लगा था पर व्यक्त किस मुॅंह से करते। अब डॉक्टर साहब की सोच बदल रही थी। जब संतान का सुख बुढ़ापा में मिले ही नहीं तो फिर संतान पैदा करके कोई क्या करेगा। सिर्फ वंश बढ़ाने के लिए और ऐसा वंश बढ़ाना भी किस काम का। इसी तरह पाॅंच साल बीत गये और इस बीच सिर्फ फोन से बात होती रही थी। जब कभी डॉक्टर साहब आने के लिए बोलते तो काम का बहाना बनाकर बात को टाल जाता था। इसी बीच खबर मिली कि छोटा बेटा वहीं भारतीय मूल की किसी लड़की से विवाह कर लिया है। डॉक्टर साहब इससे बहुत क्रोधित हुए।किस वंश की लड़की है,कैसी है, ना कुछ समझा बस शादी कर लिए।बेटा डर से पिताजी को फोन नहीं कर पाता था। कुछ दिनों के बाद दोनों बेटा एक सप्ताह के लिए पूरे परिवार के साथ घर आया। अब तक डॉक्टर साहब का गुस्सा भी शाॅंत पड़ गया था। उन लोगों के हाव-भाव और बात विचार से डॉक्टर साहब को लग गया था कि अब दोनों विदेश में ही रहेगा। दोनों बेटा ने लोक लेहाज़ को देखते माॅं पिताजी को भी अपने साथ जाने के लिए कहा।सालों से इस शहर के हवा पानी में रहे कोई भी कैसे एक बार में ही सब छोड़ छाड़कर दूसरे देश रहने के लिए चला जाएगा। डॉक्टर साहब ने दो टूक शब्द में जाने से मना कर दिया। दोनों बेटा भी अपनी पत्नी के दबाव में यही चाहता था। घर में छोटे बेटे की पत्नी का पहली बार आना हुआ था, इसलिए उनके स्वागत में एक पार्टी रखी गई। पार्टी में लोगों के चुभते-चुभते सवालों का सामना करना पड़ रहा था डॉक्टर साहब को।जिससे वो बचते फिर रहे थे। बिना पिताजी की आज्ञा से शादी रचा लिया ऐसा संस्कार तो आपने नहीं दिया था कभी। अभी डॉक्टर साहब के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था। अंदर से टूट गए थे। शादी ब्याह में पार्टी या इस तरह का आयोजन करना रिश्ते को सामाजिक स्वीकार्यता या मान्यता प्रदान करवाना होता है। डॉक्टर साहब का भी इस पार्टी के पीछे यही उद्देश्य था,जिससे लोग नए सिरे से संबंधों को स्वीकार ले और समाज में इस बात को बतंगड़ बना कर बाद में अधिक थू थू नहीं हो।
पार्टी समाप्त होने के तीसरे दिन दोनों बेटा परिवार सहित वापस चले गए। अब दिन-रात फिर पहले की तरह कटने लगा। इधर से डॉक्टर साहब के पत्नी की तबीयत भी अब ठीक नहीं रहने लगी थी। जबकि स्वयं डॉक्टर थे फिर भी पत्नी को उन्होंने एक दूसरे डॉक्टर से दिखलाया। उन्हीं की दवाई चल रही थी। एक दिन पत्नी की ऑंखों के सामने अचानक अंधेरा छा गया और वह असंतुलित होकर गिर पड़ी।संयोग से उस समय डॉक्टर साहब घर पर ही थे। पत्नी को आनन-फानन में गाड़ी से लेकर अस्पताल पहुॅंचे और उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। कई जाॅंच करवाया गया और वहाॅं के डॉक्टर द्वारा बताया गया कि उसकी पत्नी को ब्लड कैंसर अंतिम फेज में है। अगर चाहे तो दूसरे जगह भी दिखला सकते हैं अपनी पत्नी को। डॉक्टर साहब को काटो तो खून नहीं।यह सुनते ही पूरा शरीर बर्फ की तरह ठंडा हो गया। दो दिन बाद ही डॉक्टर साहब अपनी पत्नी को अपने क्लीनिक के कंपाउंडर रमेश के साथ मुंबई लेकर गए और इलाज के क्रम में एक महीना तक मुंबई में रहे। डॉक्टर उन्हें फिर एक महीना के बाद दिखाने के लिए कहा तो डॉक्टर साहब सोचे कि एक महीना तक इलाज चलना नहीं है तो यहां रह कर क्या करेगा। ये लोग वापस घर आ गए और बेटा को भी सूचना दे दी गई थी। पत्नी की स्थिति में कोई सुधार नहीं देख डॉक्टर साहब पूरे तनाव में थे। ऊपर से दोनों बेटा का घर आने की जगह वीडियो कॉल कर समाचार पूछने की औपचारिकता। डॉक्टर साहब इससे तंग आ गए थे। डॉक्टर साहब का कंपाउंडर रमेश भी देखभाल करने के लिए अब वहीं रहने लगा। आज रात तबीयत काफी खराब हो गई थी,पर मुंबई से इलाज करवाने वाले रोगी को इस शहर में किस डाक्टर को दिखलाया जाए। स्थिति अधिक बिगड़ते देख अंत में शहर के सबसे बड़े अस्पताल में लेकर गए। स्थिति काफी खराब थी ऑंखें बंद हो गई थी और शरीर में कोई हरकत भी नजर नहीं आ रहा था। आखिर सुबह चार बजे उसकी पत्नी सदा के लिए ऑंखें बंद कर ली। डॉक्टर साहब इतने टूट चुके थे कि नहीं रो पा रहे थे नहीं कुछ बोल ही पा रहे थे। रमेश द्वारा खबर करने के बाद मोहल्ले से भी कुछ लोग सुबह सुबह अस्पताल पहुॅंच गए और अस्पताल की प्रक्रिया को निपटा कर लाश को ले जाया गया। डॉक्टर साहब की स्थिति बहुत खराब थी। वह रोये भी तो रोये किसके कंधे पर सर रख कर। घर में अकेले थे और सब बाहर के आदमी थे।एक बेटा आज रात में और दूसरा कल आएगा। इसलिए बेटा के आने के बाद ही दाह संस्कार होगा।
वही हुआ दोनों बेटा जब पहुॅंच गया तब दाह संस्कार हुआ। डॉक्टर साहब अपनी जीवनसंगिनी के साथ छोड़ देने से बिल्कुल अकेले पड़ गए थे। शरीर सूख कर एकदम आधा हो गया था। अभी घर में बेटा बहु और बच्चों के रहने के बाद भी उन्हें सब कुछ कृत्रिम लग रहा था। बोलना चालना भी पूरा कम हो गया था। पहले दिन भर क्लीनिक और शाम में पत्नी के साथ अच्छी भली जिंदगी कट रही थी। अचानक से ऐसा तूफान आया कि डॉक्टर साहब के जिंदगी की नाव ही डगमगा गई। आज पूरे पंद्रह दिन हो गए थे पत्नी के गुजरने का।सब क्रिया कर्म निपट गया था। दोनों बेटा अब वापस जाने की बात कर रहे थे, लेकिन लोक लज्जा का भाव भी था। यहाॅं समाज में लोग क्या बोलेंगे कि माॅं के मरते ही बुढ़ा बाप को अकेले मरने के लिए छोड़कर दोनों बेटा रफ्फू चक्कर हो गया। क्या इसी दिन के लिए लोग संतान पैदा करता है। दोनों बेटा विचार कर अपने पिताजी की देखभाल करने के लिए एक विश्वासी आदमी का इंतजाम करने को सोचा जो डॉक्टर साहब का अच्छे से ख्याल रख सके। श्राद्ध में डॉक्टर साहब के गाॅंव से आये लोगों से बात करने पर गाॅंव के ही व्यक्ति कृष्ण मुरारी को डॉक्टर साहब के पास रखने पर विचार किया गया। कृष्ण मुरारी बहुत ईमानदार तथा बिल्कुल फ्री टाईप का आदमी था। पति पत्नी किसी में कोई कमी होने के कारण कोई बच्चा अभी तक नहीं हुआ था। कितना डॉक्टर वैद्य को दिखलाया और जितना भी संभव हो सका मंदिरों में जाकर दोनों पति-पत्नी ने माथा भी टेका। पर कुल मिलाकर नतीजा अभी तक शून्य ही था। पत्नी भी कुछ दिन ससुराल तो कुछ दिन मैके का चक्कर लगाती रहती थी।
कृष्ण बिहारी की पुश्तैनी संपत्ति से घर का गुजारा चल जाता था लेकिन संतान नहीं होने के कारण उसमें एक अजीब तरह की कसमसाहट थी। उसको लगता था कि गाॅंव में लोग उनके पुरुषार्थ को ही संदेह की दृष्टि से देखते हैं। इसलिए जिंदगी में स्थिरता कम थी और भटकन अधिक था। संतान नहीं होने से लोगों को उनके प्रति सहानुभूति थी। डॉक्टर साहब के पास आदमी रखने की बात पर सर्वप्रथम इन्हीं का नाम लोगों के दिमाग में आया। हो ना हो डॉक्टर साहब के पास रहने से कोई नुस्खा मिल जाए और कृष्ण बिहारी की पत्नी का पांव भारी हो जाए। कृष्ण बिहारी को वहाॅं पर बुलवाया गया और सारी बातें बताई गई। कृष्ण बिहारी भी फ़ौरन तैयार हो गया और दो दिन बाद ही अपना बोरिया बिस्तर लेकर पत्नी समेत आ भी गया। डॉक्टर साहब का बड़ा मकान बगल में मार्केट सिनेमा हॉल और क्या चाहिए। जब मन होगा पत्नी को भी घुमाने के लिए ले जाएगा । गाॅंव का पहचान वाला आदमी के आने से बेटा भी निश्चिंत हो गया था। बाहर के लोगों की क्या गारंटी। पैसा के कारण तो आज कल कुछ भी कर सकता है।आदमी के मन में क्या है कोई झांककर थोड़े देखता है। कृष्ण बिहारी के आने के बाद दोनों बेटा हिचकिचाते हुए वापस चले गए। फिर डॉक्टर साहब को अपना घर ही काटने के लिए दौड़ने लगा। बात बात पर ऑंखों में ऑंसू आ जाता था और पत्नी को याद कर बोलते थे क्यों नहीं उनको भी साथ लेकर चली गई निर्दयी।
पर कृष्ण बिहारी के आ जाने से डॉक्टर साहब मन भी धीरे धीरे बहलने लगा था। ठेठ अपना गाॅंव वाली भाषा में बोलता था। डॉक्टर साहब को भी सब कुछ यहाॅं अब अपने गाॅंव वाले घर की तरह लगने लगा था लेकिन अब डॉक्टर साहब के जीने का ढंग बिल्कुल बदल गया था। क्लीनिक जाना छोड़ दिए थे। इतने दिनों तक जो जी जान लगाकर कमाया,उससे क्या मिला। पत्नी सदा के लिए छोड़ कर चली गई और बच्चे भी केवल निशानी मात्र बन कर रह गये थे। डॉक्टर साहब की अच्छी प्रैक्टिस थी उस शहर में। लाख मना करने के बाद भी उनके पुराने रोगी अब घर पर ही आना शुरू कर दिए। शुरु शुरु में तो डॉक्टर साहब आनाकानी किये। लेकिन लोगों से बात करने पर और बीमार व्यक्ति को सामने देखकर एक डॉक्टर का धर्म जीवित हो उठा। घर पर से बिना देखे ही रोगियों को वापस कर देना जघन्य पाप से कम नहीं होता। वैसे भी कौन पाप किये थे पिछले जन्म में,जो जिंदगी इस तरह से काटनी पड़ रही है। धीरे धीरे घर पर ही रोगियों का आना जारी हो गया। अब रमेश भी काम पर वापस आ गया था। बीच-बीच में कृष्ण बिहारी घर चला जाता था तब रमेश रात में वहीं सो जाता था। वैसे डॉक्टर साहब उसे रुकने के लिए नहीं कहते थे लेकिन वह मानता नहीं था। एक तो डॉक्टर साहब के पास बरसों से काम करने के कारण डॉक्टर साहब से स्नेह था और दूसरा कि उनकी रोजी-रोटी डॉक्टर साहब से ही चल रही थी। डॉक्टर साहब भी रमेश को बेटा की तरह मानते थे। घर पर रोगियों के आने से डॉक्टर साहब का मन भी थोड़ा बहलने लगा था। नहीं तो पत्नी के गुजरने के बाद उनकी स्थिति ऐसी लग रही थी ये स्वयं भी बहुत कम दिनों के मेहमान हैं। बेटा बहु सब कभी कभी डॉक्टर साहब से वीडियो कॉल पर हालचाल पूछा करते रहते थे,लेकिन उन लोगों का यहाॅं आना नहीं के बराबर हो गया था। डॉक्टर साहब जब कभी एकांत में होते तो सोचते रहते कि कितना अरमान था कि बेटा विदेश में पढ़े और नौकरी करे। आज उन्हीं की सोच उन्हीं पर भारी पड़ गई थी। वह पुराने समय के खाए पिये थे कि इस उम्र में भी अपने जरुरी काम स्वयं निपटाने का प्रयास करते। सिगरेट पीने के शौकीन थे। कभी-कभी अगर सामने में कोई नहीं दिखता और सिगरेट पीने की तलब तेज हो जाती तो पैदल ही पास के चौक तक चले जाते थे। लेकिन इतनी दूर जाने में ही हांफने लगते और अगर कोई देख लेता तो बोलता कि जब हम लोग यहाॅं थे तो आप क्यों स्वयं चले आते हैं।अगर कोई काम हो तो एक बार हम लोगों को क्यों नहीं बोल देते। ये सुनकर डॉक्टर साहब केवल मुस्कुरा देते बोलते कुछ नहीं। कृष्ण बिहारी और उसकी पत्नी के रहने से घर में हलचल रहता था। जब कोई काम नहीं रहता तो कृष्ण बिहारी जोर-जोर से अपनी धुन में गाना ही शुरु कर देता। धीरे-धीरे पड़ोसियों से भी उनकी अच्छी जान-पहचान बढ़ गई। वह पड़ोसियों का काम करने में भी पीछे नहीं रहता था। अब कृष्ण बिहारी कभी गाॅंव जाता तो डॉक्टर साहब की जिम्मेदारी पड़ोस के लोगों को भी देकर जाता था। इसी तरह दिन बीत रहा था। डॉक्टर साहब के पास रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण अब कृष्ण बिहारी भी रमेश की सहायता करता था। धीरे-धीरे कृष्ण बिहारी भी थोड़ा बहुत सीख गया था। डॉक्टर साहब ने भी कृष्ण बिहारी का इलाज भी दूसरे डॉक्टर से करवाना शुरू कर दिए थे।दूसरे डॉक्टर साहब ने कहा था कृष्ण बिहारी में ही खराबी है। उसकी पत्नी में कोई खराबी नहीं है और आश्वस्त किये थे कि बहुत जल्द ठीक हो जाएगा। ये सुनकर कृष्ण बिहारी के मन में लड्डू फूटने लगा था।
डॉक्टर साहब अकेले होते तो सोचते धरती पर अकेला आया हूॅं और जाऊंगा अकेला ही और अभी भी अकेला हूॅं। क्यों यह कृष्ण बिहारी बच्चा के लिए इतना बेचैन है। मैं संतान पैदा करके कौन सा बड़ा पहाड़ ढा़ दिया। मैं कोई राजा तो नहीं हूॅं कि मेरा राजवंश चलेगा और राजा का बेटा राजा बनेगा।अगर मेरा वंश नहीं भी आगे बढ़ता तो देश में अकाल तो नहीं पड़ जाता। यह संतान पैदा करना क्षणिक खुशी मात्र है। यह कृष्ण बिहारी कितना स्वतंत्र है अभी। केवल संतान पैदा करने मात्र से नहीं होता है। उसे पालो पोसो और फिर पढ़ा लिखा कर पैरों पर खड़ा करो।इसके बाद उनके द्वारा सब बात में टोका टोकी बर्दाश्त करो। निजी स्वतंत्रता पर प्रहार सहते हुए सब कुछ समेट कर उसके हाथों में सौंप कर विदा ले लो। यही सब तो राम कहानी है।
डॉक्टर साहब की संतानों का व्यवहार अब कृष्ण बिहारी और उसकी पत्नी से भी छुपा नहीं रह गया था। कभी-कभी अचानक डॉक्टर साहब के कमरे में किसी काम के कारण जाने से डॉक्टर साहब की ऑंखों में ऑंसू उन्होंने कई बार देखा था। एकांत में ऑंखें बंद कर डॉक्टर साहब को बुदबुदाते और गाल पर ऑंसू के बूॅंद लुढ़कते हुए देखता। डॉक्टर साहब के संतानों की बेरुखी और डॉक्टर साहब का एकांकी जीवन देख कर सीधा सादा कृष्ण बिहारी का मन विचलित हो जाता था और वह उनके पुत्रों के प्रति घृणा और क्रोध से तिलमिला जाता। क्या लाभ संतानों को पैदा कर और उसे पढ़ा लिखा कर नौकरी करने के लिए विदेश भेजने का। बढ़ती उम्र के साथ जब शरीर को किसी सहायता की जरूरत हो और संतान रहते भी किसी दूसरे की ओर मुॅ़ंह उठाकर आशा भरी नजर से देखना पड़े तो इससे अच्छा है कि संतान नहीं ही हो। कम से कम मन में संतोष का भाव तो रहेगा और भगवान को इसके लिए कोस तो सकता है। कृष्ण बिहारी यह सब देख व्यथित रहने लगा था और संतान के प्रति उसका मोह कम होने लगा। उन्हें लगने लगा था कि संतान नहीं होने से लोगों का ताना सुनना अच्छा है बनिस्पत संतान होकर भी डॉक्टर साहब की तरह घुट घुट कर बुढ़ापा का दिन काटना पड़े। यह तो संतान नहीं होने के दुःख से भी बहुत ही अधिक दुखदायी है।
एक दिन डॉक्टर साहब सुबह सुबह तैयार हुए और कृष्ण बिहारी को बुलाकर बोले फटाफट तुम और तुम्हारी पत्नी तैयार हो जाओ। हमें कहीं बाहर जाना है। बिहारी के पूछने पर कि कहाॅं जाना है तो डॉक्टर साहब ने बताया कि एक पूर्व परिचित डॉक्टर से बात हुई है उनके इलाज से कई निसंतान दंपत्ति को संतान होने का सुख मिला है। उन्हीं ने आज बारह बजे मिलने का समय दिया है। भगवान ने चाहा तो इस डॉक्टर के इलाज से बहु गर्भवती हो जाएगी। डॉक्टर साहब को लगा कि ये सुनने के बाद कृष्ण बिहारी खुशी से उछल पड़ेगा पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पता नहीं क्या हुआ ? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी।क्यों इसमें कोई परेशानी है क्या। तब कृष्ण बिहारी ने कहा छोड़ दीजिए।अब नहीं मिलना है डॉक्टर से। क्यों डॉक्टर साहब ने पूछा।इसमें खराबी क्या है।जब डॉक्टर का दावा है तो फिर परखने में भला क्या परेशानी। अगर उनका दावा सही निकल गया तो फिर तुम बाप बन जाओगे।अपनी संतान होने का एक अलग सुख है और तुम इसके लिए सालों से परेशान भी हो। इस पर कृष्ण बिहारी ने रोते हुए कहा अपनी संतान का क्या सुख है वह मैंने करीब से देख लिया और महसूस भी कर लिया है। संतान नहीं होने का दुःख संतान होने के सुख से अच्छा है। यह कह कर कि कृष्ण बिहारी ऑंसू पोछते हुए बाहर चला गया और डॉक्टर साहब का मुॅंह खुला का खुला ही रह गया और धम्म से वहीं कुर्सी पर बैठ गये।
कृष्ण बिहारी का आज का व्यवहार देखकर डॉक्टर साहब को अन्दर से बहुत झटका लगा था। अब वह अधिक ही गुमसुम रहने लगे थे। कृष्ण बिहारी की पत्नी भी कुछ दिन के लिए अपने मायके गई हुई थी। इसी बीच देश में अचानक कोरोना का भूचाल उठा। देश में सारी व्यवस्था ही एकबारगी बदल गई थी। देखते-देखते लॉकडाउन लग गया और अब घर से निकलना भी मुश्किल हो गया था। डॉक्टर साहब रोगी को देखना भी बंद कर दिये थे। कंपाउंडर रमेश भी फोन से ही हालचाल पूछता लाॅकडाउन के कारण आ नहीं पाता था। जिस समय लॉकडाउन में कुछ समय के लिए जरुरी काम निपटाने के लिए ढी़ल दी जाती उसी समय कृष्ण बिहारी जाकर जरुरी का सामान बाजार से खरीद कर ले आता। चारों और कोरोना से हर दिन लोगों के मरने की सूचना आ रही थी।सड़के सुनी और वीरान हो गई थी।सभी अपने अपने घर में दुबके हुए थे। लगता ही नहीं था कि यहाॅं कोई आदमी भी रहता है। सड़कों पर पुलिस की कड़ी तैनाती थी। पुलिस की नजर बचाकर हिम्मती लोग इधर से उधर करने का प्रयास करते और पकड़ा जाने पर अपनी फजीहत करवा लेते। अन्दर से कोरोना का भय और अपना होते हुए भी किसी अपने का साथ नहीं होने से डाॅक्टर साहब बुरी तरह टूट चुके थे।नींद नहीं आने की वजह से नींद की गोली खाकर सोने का प्रयास करते।
कृष्ण बिहारी की पत्नी भी आने के लिए फोन की थी। कृष्ण बिहारी ने आश्वस्त किया था कि लाॅकडाउन समाप्त होते ही वह जाकर ले आएगा। दो सप्ताह बाद अचानक कुछ दिन के लिए लाॅकडाउन समाप्त होने की घोषणा हुई। रमेश को डाक्टर साहब का भार देकर कृष्ण बिहारी पत्नी को लाने के लिए ससुराल गया। उसी रात रमेश के पिताजी की तबीयत काफी खराब हो गई। कोरोना का लक्षण नजर आ रहा था। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में रोगियों की संख्या अधिक होने के कारण भर्ती में काफी कठिनाई हो रही थी। रमेश को जैसे ही खबर मिली वह भागा भागा अस्पताल पहुॅंचा और समुचित इलाज करवाने के लिए बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के आगे हाथ जोड़ कर उन्होंने अपने पिताजी को अस्पताल में भर्ती करवाया। उसका कोई और परिजन भी कोरोना के भय से अस्पताल नहीं आ रहा था। जिसके कारण रात में रमेश को अकेले अस्पताल के बाहर ही रुकना पड़ा। सुबह किसी परिजन के आ जाने के बाद उसे अचानक डॉक्टर साहब की याद आई वह अस्पताल से ही भागा भागा डॉक्टर साहब के घर पर पहुंचा। दरवाजा बंद था। आवाज देने पर दरवाजा नहीं खुला।अंदर से कोई आवाज भी नहीं आ रही थी। अब उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। रात भर का जागा रमेश बिल्कुल परेशान नजर आ रहा था। क्या करे और क्या नहीं। कमरे में कोई हरकत भी नहीं हो रही थी। संयोग से गश्त करते पुलिस पर उसकी नजर पड़ी। भागकर वह रोड पर गया और डरते डरते पुलिस को सारी बात बताई। पुलिस की बहुत कोशिश करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो सब ने मिलकर दरवाजा को तोड़ा और अंदर घुसते वहाॅं का दृश्य देखते ही सबके होश उड़ गए। डॉक्टर साहब जमीन पर औंधे मुॅह लुढ़के हुए थे। यह देखते ही रमेश की जोर से चीख निकल गई। डॉक्टर साहब अब बहुत दूर चले गये थे। कोरोना के कारण अधिक लोग तो नहीं लेकिन चीख-पुकार सुनकर अगर बगल के कुछ लोग आ ही गए। इसी बीच कृष्ण बिहारी भी अपनी पत्नी को लेकर वहाॅं रिक्शा से पहुॅंचा पर दरवाजे पर पुलिस और अन्य लोगों को देख उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जब आगे बढ़ कर अन्दर देखा तो हलक से आवाज ही नहीं निकल रही थी। दिमाग काम करना बंद कर दिया था। पुलिस के द्वारा एम्बुलेंस मंगाया गया। जरुरी प्रक्रिया कर डेड बॉडी को तुरंत पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाया गया और इस बीच उनके दोनों बेटों को भी सूचना दे दी गई थी। कोरोना के कारण फ्लाईट बंद होने से अभी तुरंत आना संभव नहीं था। अब लाश को रखा नहीं जा सकता था और वैसे भी लोग कोरोना के भय से मृतक के शरीर से दूरी बनाए हुए था। बाद में दो जीवित पुत्र के रहते हुए भी कृष्ण बिहारी और रमेश तथा आसपास के कुछ आदमी मिलकर डॉक्टर साहब का दाह संस्कार करने के लिए शवदाह गृह लेकर गया।