और हम उदास हैं . . . !
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एक बार फिर से यादों की पोटली में से एक गीत प्रस्तुत है ; यह गीत ५-३-१९७३ को लिखा गया था ।
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* और हम उदास हैं . . . ! *
शबाब पर है शहर की रात
और हम उदास हैं
चल चुके हैं घर से वो
आ रहे हैं राह में
कैसे दिलफ़रेब अपने क़यास हैं
और हम उदास हैं . . .
ये कुमकुमों की रौशनी
बिखरी हुई है दूर – दराज़
चूड़ी के बजने की दूर से
आ रही है आवाज़
कुछ नहीं कहीं नहीं
ख़्यालात की बस ये है परवाज़
और हम उदास हैं . . .
वक्त होगा मेहरबाँ
खिलेंगे फूल दुआओं के
मिलेंगे जब वो हमनशीं
वादे होंगे वफ़ाओं के
वीराँ मगर है रहगुज़र
सिर्फ़ साये हैं ये हवाओं के
और हम उदास हैं . . .
फिर तेरे शहर में आज
आए हैं लुटने को हम
दिल पुकारे नाम तेरा
ओ सनम ओ सनम
तू है कहाँ नामेहरबाँ
चिराग़े – सहरी देख ले
बुझ रहा है दम – ब – दम
और हम उदास हैं . . . !
९४६६०-१७३१२ वेदप्रकाश लाम्बा