और रायता फैल गया
और रायता फैल गया।
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बात वर्ष 2010 की है। मैं उन दिनों बिधुना जिला औरेया में नियुक्त था। बैंक के कार्य में अत्यधिक व्यस्तता के कारण साहित्यिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय नहीं रह पाता था, फिर भी कुछ विशिष्ट कार्यक्रमों में जाना पड़ता था।
ऐसे ही एक कार्यक्रम में हिन्दी दिवस के अवसर पर मुझे जाना पड़ा। आयोजकों से मैंने पूर्व में ही बता दिया था कि मैं अधिक देर तक नहीं रुक सकूँगा, तथा कार्यक्रम के मध्य में आ जाऊँगा, जिस पर वह राजी हो गये।
कार्यक्रम पूर्वान्ह 11 बजे शुरू होना था। मैं समय से कार्यक्रम स्थल पर पहुँच गया। अन्य अतिथियों में बिधुना के एस डी एम और सपा के जिला अध्यक्ष थे, वह भी आ गये थे। कुछ देर प्रतीक्षा के बाद भी कार्यक्रम प्रारंभ नहीं हुआ, पूछने पर मालूम हुआ कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक भी आमंत्रित हैं और वह कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हैं। खैर थोड़ी ही देर में डीजीपी साहब भी सपत्नीक आ गये। उनके आने के बाद नाश्ते का दौर चला, आपस में हमारा परिचय करवाया गया, और उसके बाद लगभग 12.30 तक कार्यक्रम शुरू हो पाया।
अब चूंकि छोटे कस्बे में डीजीपी साहब का आना बहुत बड़ी बात थी, अतः स्वाभाविक ही काव्य पाठ हेतु आने वाले कवियों की संख्या भी बहुत थी।
कार्यक्रम शुरू हुआ तो सर्वप्रथम मंच विराजमान हुआ। मंच पर अध्यक्षता हेतु स्थानीय विधायक के पिताजी जो स्वयं अच्छे कवि भी थे आमंत्रित किये गये। मुख्य अतिथि डीजीपी साहब के अतिरिक्त हम, एस डी एम साहब, तथा सपा के जिला अध्यक्ष जो कवि भी थे, विशिष्ट अतिथि थे। खैर साहब दीप प्रज्वलन, पुष्पार्पण तथा माल्यार्पण आदि संपन्न होने के बाद लगभग एक बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। सरस्वती वंदना के बाद लगभग दो तीन कवि ही काव्य पाठ कर पाए थे कि कार्यक्रम संयोजक स्वयं काव्यपाठ हेतु आ गये। उन्होंने अपने संबोधन में बारी बारी हम सभी अतिथियों की काव्यात्मक प्रशंसा या महिमामंडन प्रारंभ किया और पंद्रह बीस मिनट उसमें लग गये। कार्यक्रम में मंचासीन तत्कालीन जिला सपा अध्यक्ष को भी जाने की जल्दी थी। उधर लगभग 2 बज गये थे। आयोजक जान रहे थे कि धीरे धीरे मंचासीन अतिथिगण जाने का उपक्रम करेंगे। क्योंकि उन्होने भोजन की व्यवस्था भी कर रखी थी, और यदि मंचासीन अतिथिगण बिना भोजन किये चले जाते तो उनका उपक्रम व्यर्थ हो जाता। परिणामस्वरूप उन्होंने मंच की ओर मुखातिब होते हुए काव्यपाठ हेतु सर्वप्रथम सपा के नेताजी को, फिर हमें, फिर एसडीएम साहब को व डीजीपी साहब को बारी बारी से आमंत्रित किया। अपने उद्बोधन के बाद ही डीजीपी साहब ने चलने की इच्छा व्यक्त की, तो एस डी एम साहब व सपा अध्यक्ष भी उठ लिये। यद्यपि मुझे भी अपने कार्यवश वापस होना था, फिर भी मैं रुक गया, क्योंकि ऐसी स्थिति में उठना मुझे उचित न लगा।
अब हम व स्थानीय विधायक जी के पिताजी ही मंच पर रह गये।
इधर संचालक महोदय ने एक अन्य कवि को काव्यपाठ हेतु आमंत्रित कर लिया । वह आकर काव्यपाठ शुरू करते इससे पहले ही कुछ कविगण भोजन शुरु होने के कारण अधिकारियों के साथ साथ भोजन करने व बतियाने के प्रयोजन से उठ लिये, फिर उनकी देखादेखी कुछ और उठे, फिर कुछ और उठे और हाल लगभग खाली सा हो गया।।अभी यह सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक अध्यक्ष जी तमतमा उठे और बोल पड़े, हम क्या फालतू हैं जो अकेले बैठे रहेंगे। हम भी उठ रहे हैं, और यह कहते हुए उठ गये, और उनके साथ साथ सभी उठ गये और जमकर तू तू मैं मैं और आलोचना प्रत्यालोचना होने लगी। अधिकांश कवियों की हसरत डीजीपी साहब के समक्ष अपनी काव्य प्रतिभा प्रदर्शित करने की थी, वह धरी की धरी रह गयी थी। संभवतः अध्यक्ष महोदय भी डीजीपी साहब के समक्ष अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करना चाहते थे, और जब लगा कि अब तो अवसर हाथ से निकल गया, तो उन्होंने खुद ही रायता फैलाना उचित समझा और रायता फैल भी गया। हमने भी चुपचाप प्लेट सम्हाली और थोड़ा बहुत खाकर आयोजकों से हाथ मिला कर वापस आ गये।
उस आयोजन ने सिखा दिया कि बहुत ज्यादा प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं को बुलाना रायता फैलने का गारंटीशुदा उपाय है।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।