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26 Aug 2024 · 1 min read

और एक रात! मध्यरात्रि में एकाएक सारे पक्षी चहचहा उठे। गौवें

और एक रात! मध्यरात्रि में एकाएक सारे पक्षी चहचहा उठे। गौवें रम्भाने लगीं, बछड़े उछलने कूदने लगे, नदियों का वेग सौगुना हो गया, अधर्म की आंखों पर निद्रा छा गयी, सारी जंजीरें टूट गईं, किंवाड़ स्वतः खुल गए, और नकारात्मकता से भरे उस क्रूर कालखंड की उस काली अंधेरी रात में, बंदीगृह के सीलन भरे भयावह कमरे में, उस चिर दुखिया स्त्री की गोद में सम्पूर्ण ब्रम्हांड का तेज एकत्र हो कर बालक रूप में प्रकट हुआ।
सारी हवाएं उस बालक के चरण छू लेने को व्यग्र हो गयी थीं। उस बालक के ऊपर बरस कर उसका अभिषेक करने को आतुर मेघों के आपसी टकराव से उत्पन्न विद्युत की गरज में जैसे प्रकृति का उद्घोष था, कि धर्म कभी समाप्त नहीं होता। जब जब अधर्म चरम पर पहुँचता है, ईश्वर तभी आते हैं। परित्राणाय साधूनाम्… साधुओं के त्राण के लिए! विनाशाय च दुष्कृताम… दुष्टों के विनाश के लिए! धर्मसंस्थापनार्थाय… धर्म की स्थापना के लिए… वे आ गए थे। वे ऐसे ही आते हैं।

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