औरतें नदी की तरह होतीं हैं। दो किनारों के बीच बहतीं हुईं। कि
औरतें नदी की तरह होतीं हैं। दो किनारों के बीच बहतीं हुईं। किसी एक किनारे की तरफ जब खिचतीं हैं तो दूसरा किनारा कछार में बदल जाता है और नदी एक नया दूसरा किनारा बना लेती है। जिस किनारे की तरफ नदी खिंचती है, असल में वो भी डूब जाता है और अपना अस्तित्व खोकर नदी हो जाता है। नदी, नदी ही रहती है जबकि किनारे, नदी कछार होते रहते हैं। नदी असल में प्रेम समुद्र से करती है और वो बस किनारे बदलते हुए समुद्र तक की यात्रा करती है किनारे उसके साथी नहीं हैं, उसकी यात्रा के सहयात्री हैं।
समुद्र का कोई किनारा नहीं होता, उसकी विशालता ही उसका किनारा है। समुद्र नदियों की नियति होता है, नदियों के बेशर्त प्रेम की आखरी मंजिल। वो नदियों से प्रेम नहीं करता, वो चाँद पर मरता है। चाँद को देखकर, मचलता है, तड़पता है, रोता है। किसी को कोई नहीं मिलता, नदियाँ समुद्र में मिलतीं हैं पर समुद्र नहीं मिलता। समुद्र को चाँद नहीं मिलता जबकि चाँद इतने चाहने वालों के होते के होते हुए अकेला है।