औकात
इंसान बदल जाता है जरूरत बदल जाती है।
गुजरते वक्त के साथ ही आदत बदल जाती है।
फरमाते है सुलूक अब भी वो तहजीब से लेकिन,
मतलब बदलते ही क्यों फितरत बदल जाती है।
महफिल में आपकी अहमियत बदल जाती है,
जब निस्बत की हुबहू सूरत बदल जाती है।
मुस्कुरा कर मिलते है सभी मुझसे आजकल,
सच हैसियत जो बदले कीमत बदल जाती है।
रोज गिरगिट के जैसे क्यों रंगत बदल जाती है,
हसीन तितलियों की जैसे सीरत बदल जाती है।
पास जब कुछ नही,तो कहां था कोई अपना,
क्यूं वक्त के बदलते मोहब्बत बदल जाती है।
चंद रुपयों के खातिर जब नीयत बदल जाती है।
तब इंसानों की अक्सर इंसानियत बदल जाती है।
है मोहब्बत को मापने का क्या सटीक ये पैमाना,
ये होती है तभी अपनी जब शौहरत बदल जाती है।
सब कुछ बदल जाता है जब दौलत बदल जाती है।
तब आदमी दर आदमी हैसियत बदल जाती है।
जो उठाते थे उंगलियां,मुफलिसी मेरी देखकर,
अब औकात मेरी देखकर इज्जत बदल जाती है।
@साहित्य गौरव