ओ प्रिय (अतुकांत काव्य)
ओ प्रिय (अतुकांत काव्य)
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प्रिय ! तुम ही तो जीवन हो
जीवन की शाम में और भी ज्यादा आकर्षक और आवश्यक ।
जीवन तुम्हारे अस्तित्व पर ही तो टिका है !
न घर ,न बाहर ,न हँसी ,न उल्लास-
सब कुछ तुमसे ही है
तुम्हारे साथ ही है
तुम्हारे द्वारा ही तो यह घर महकता है ।
अच्छा लगता है तुम्हारा रूठना ,नखरे करना और अक्सर गुस्सा हो जाना ।
इनके बिना जीवन में अधूरापन होगा।
कोई नहीं है सिवाय तुम्हारे
जो इतने प्यार से मुझे अपनत्व की डोर से बांध कर रख सके।
तुम्हारी हर क्रिया और प्रतिक्रिया में प्यार ही प्यार है ।
यही सच पूछो तो जीवनी-शक्ति से भरा हुआ संसार है ।
अक्सर याद आता है
तुम्हारा अटपटे मुहावरों वाली भाषा में बात करना
याद आता है तुम्हारा बहुत कुछ भूल जाना
सब कुछ सीधे-सपाट कह देना
अच्छा लगता है तुम्हारा मुझे बुद्धू समझना।।
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रचयिता : रवि प्रकाश ,रामपुर
रचना तिथि : 10 दिसंबर 2021