ओ परबत के मूल निवासी
ओ परबत के मूल निवासी
ओ परबत के मूल निवासी, भोले भाले शिव कैलाशी।
जब जब होता व्याकुल जग से, तब तुझको देखे अविनाशी।
भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।
अंधकार तब होता डग में , काँटे बिछ जाते हैं पग में।
विचलित मन अब तुझे पुकारे, तमस हरो हे अपरिभाषी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।
शिव शक्ति हीं राह हमारी, शिव की भक्ति चाह हमारी।
एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,शिव कदमों में निजमन लय हो।
यही चाह ले इत उत घुमुं , अमरनाथ बदरीनाथ काशी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।
अजय अमिताभ सुमन