ओस बूँद
* मनहरण घनाक्षरी*
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*****ओस- बूँद****
ओस की हैं बूँदे आई,
धरा पर है बिछाई ।
रात रो रो है बिताई,
जिंदगी अश्क बनी।।
सूर्य किरण है आए,
ओस है पिंघल जाए।
मन मेरा घबराए,
भौहें हैं खूब तनी।।
मोतियों सी चमकती,
हरी पत्ती महकती।
चिड़ियाँ हैं चहकती,
है घटा घोर घनी।।
मनसीरत मस्तानी,
केशों से टपके पानी।
जैसे चढ़ती जवानी,
फटने को है ठनी।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)