ओस की बूँदें – नज़्म
शीर्षक – ओस की बूंदें ( नज़्म )
निख़र आता है रूप तेरा ,
जब बूंदें ओस की छूती हैं ।
चांद भी शरमाता है ,
तेरे हुस्न से अप्सराएं रूठी हैं ।।
ये रूप यौवन दमकती काया,
प्रेम का इंद्रधनुष निकला हो ।
विरह की अमावस में जैसे ,
मिलन का एक दीप जला हो ।।
चाहत की फुलवारी बस,
अब सदा यूं ही आबाद रहे ।
मन में खुशियों की किलकारी,
अब सदा यूं ही दिलशाद रहे ।।
ये कैसी ओस की बूंदें हैं,
ये कैसा प्यार का सावन है ।
पल पल तेरा रूप सजाता,
ये मौसम तो मनभावन है ।।
© डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , मध्यप्रदेश