ओझल
रात के कहकहे में,
औंधे पड़े हैं दिन के सन्नाटे
सब को मालूम हैं ये गायब रास्ते,
मगर ये पहचाने नहीं जाते
ये गली शरीफों की नहीं है,
पर शरीफ लोग यहीं आते
रात के कहकहे में,
औंधे पड़े हैं दिन के सन्नाटे
सब को मालूम हैं ये गायब रास्ते,
मगर ये पहचाने नहीं जाते
ये गली शरीफों की नहीं है,
पर शरीफ लोग यहीं आते