ऑन लाइन शिक्षा … छलावा मात्र
लेख
बिना विद्यालय गए नई शिक्षा का अनुभव अनोखा जरूर है परन्तु लाभप्रद नहीं । वर्तमान की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर मैं यह कहूं कि ये तकनीक सिर्फ एक सीमा तक ही सही है; हम विद्यार्थी जीवन के समस्त चरण, विद्या ग्रहण, इत्यादि ऑन लाइन कक्षाओं के माध्यम से नहीं प्राप्त कर सकते या से सकते । जहां तक वर्तमान स्थिति को देखते हुए मैं स्वयं के अनुभव की बात कहूं तो घर पर ऑन लाइन से ज्ञान प्राप्त करना एक सीमा तक ही सही है क्योंकि कक्षा – कक्ष जैसा वातावरण , अध्यापक का समक्ष होना, पाठ से संबंधित अपनी समस्यों पर वार्तालाप ये सभी एक खालीपन का एहसास कराते हैं । घर पर हम पढ़ तो रहे हैं और अध्यापक भी अपना पूर्ण दायित्व निभा रहे हैं परन्तु पढ़ते समय एकाग्रता नहीं है क्योंकि घर… घर ही होता है जहां हमारे अभिभावक, भाई – बहन सभी साथ होते हैं ध्यान सारा वही लगा रहता है और दूसरी बात हमें ऐसा लगता है कि हम पर कोई नज़र रख रहा है हम अपनी अध्यापिकाओं के साथ उतने सहज नहीं हो पाते जितने कक्षा में होते हैं।
कभी मम्मी पानी लेकर आ जाती हैं, हमें बार – बार भूख लगने लगती है, ऑन लाइन कक्षा चल रही है और हम कभी भी कहीं भी उठकर चले जाते है बिना अध्यापक से आज्ञा लिए कुछ भी खा – पी लेते हैं क्योंकि न तो हम उन्हें देख रहे और न ही वो हमें और जरूरी भी नहीं कि सभी विद्यार्थी जो ऑन लाइन उपस्थित हैं वो उपस्थित हैं भी या नहीं ।
अपने अनुभव के आधार पर मैं यही कहूंगी कि एक विद्यार्थी के लिए विद्यालय एक मंदिर है जहां जाकर ही ज्ञान की प्राप्ति संभव है । हमारे गुरु हमारे ईश है जो हमें ज्ञान देते हैं और ज्ञान के लिए गुरु का संसर्ग चाहिए जो उनके नज़दीक रहकर ही प्राप्त होता है । चाहे इंडिया जिताना भी डिजिटल हो जाए परन्तु विद्यायल और शिक्षक का स्थान नहीं ले सकता ।
समसामयिक परिस्थिति में तकनीकी की इस विधि से शिक्षा तो दे सकते हैं पर ज्ञान नहीं और वो भी उन विद्यार्थी को जिनके पास इस सुविधा का लाभ उठाने के साधन है बाकी वंचित ही रह जाएंगे । अंत में कुछ पंक्तियों के माध्यम से मैं यही कहूंगी कि –
तकनीकी से विकास झलकता
विद्यालय से है ज्ञान बरसता
तकनीकी का बीजारोपण भी
विद्यालय की धरती पे पनपता ।
इंडिया चाहे जिताना हो डिजिटल
शिक्षा का दर एक ही घर
विद्यालय का प्रांगण ही है
छात्रों के लिए विद्या का स्थल ।
डॉ नीरू मोहन ‘ वागीश्वरी ‘