ऑनलाइन स्टडी
मोबाइल स्क्रीन ने ब्लैकबोर्ड से की ठिठोली
इतराती अदाओं संग बड़े ताव से बोली –
अरे बुद्धू ! तुम्हारा गुजर गया दौर
अब सब देख रहे हैं मेरी ओर
तुम स्कूलों में पड़े धूल फाँँक रहे हो
व्यर्थ ही खुद को मुझसे आँक रहे हो
पहले मैं हँसती-हँसाती थी
अब बच्चों को ज्ञान बाँँट रही हूँँ
बाँँध लो अपना बोरिया-बिस्तर
मैं तुम्हारी जड़े काट रही हूँँ..।
ब्लैकबोर्ड ने हाथ जोड़कर किया नमस्ते
बोला, बड़े खूब हैं तुम्हारे रस्ते
तुमने तो ज्ञान-विज्ञान की
पलट दी परिभाषाएँ
चारदीवारी में कैद दिमागों को
दे रही हो दिशाएँँ
तुम क्या जानो खेल-कूद ,
बच्चों की हमजोली
तुमने कहाँँ देखी स्कूलों की होली ?
तुम न सिखा पाओगी भावनाओं का योग
सीमित हैं तुम्हारे सारे प्रयोग
यदि तुम होती सर्वथा अनुकूल
कभी न खुलते कोई स्कूल
जो तुम बन बैठी शिक्षा का आधार
हो जाएगा देश का बँटाधार
हो जाएगा देश का बँटाधार…।
(मोहिनी तिवारी)