ऑक्सफोर्ड शाॅप
दफ्तर से थोड़ी दूरी पर क्नाॅट प्लेस में ऑक्सफोर्ड बुक्स स्टोर है जहां पुस्तक प्रेमियों के लिए मनपसंद पुस्तकों का विशाल संग्रह है मैं अक्सर वहां चला जाता हूं आज दोपहर लंच विराम में घनी उमस थी मन में विचार आया कि ममता कालिया की कृति मुखोटा को देख लिया जाए पर ऐसे पवित्र मनोरम एवम् रमणीय स्थल पर पहुंचते ही मैं सभी भाषाओं व गल्प साहित्य को देख मेरी आंखे खुली की खुली रह गई ना केवल किताबें वरन् पैन पैंसिल बाॅक्स,चार्ट एवम् शिक्षा संबंधी अनुपम जूट सामग्री लोक साहित्य व विदेशी पुस्तकें मौज़ूद थी लगा जैसे स्वर्ग में पहुंच गया हो करीब बीस मिनट मैंने किताबी संग्रह को करीब से निहारा जैसे कोई अपनी प्रेयसी को निहारता है।
मैंने दो एक किताब खरीदी मनमोहक मुस्कान के साथ पार्थ (पुस्तक विक्रेता)ने मुझे अगली मर्तवा आने का न्योता दे दिया लगा आज का दिन सफल हुआ सारी उमस अंदर के प्यारे वातावरण में गायब थी दिल चाहता था सामने रखी कुर्सी मेज पर बैठकर कुछ अध्ययन कर लूं पर समय का अभाव और दफ्तर के काज पुनः कदम दफ्तर की तरफ दौड़ पड़े मेरा हृदय जब भी विपरीत दशा से गुज़र रहा होता है मैं इस हृदयभेदी स्थल की ओर चल पड़ता हूं लगता है मेरी देह व आत्मा का उस पाक स्थल से गहरा नाता है बस आज के लिए इतना ही ….
मनोज शर्मा