ऐ वतन….
मुसलसल ग़ज़ल
ऐ वतन जानो-दिल से तुझे हम प्यार करते हैं करते रहेंगे
तेरे शैदाई तेरे दिवाने तुझपे मरते हैं मरते रहेगे
आज हैं कल रहें न रहें हम, शान तेरी न होगी कभी कम
तेरी तस्वीर में ख़ून से हम’ रंग भरते हैं भरते रहेंगे
पाक हो, चाहे हो चीन दुश्मन, तोड़ डालेंगे ये उसकी गर्दन
वीर जाँबाज़ शेरों से तेरे, शत्रु डरते हैं डरते रहेंगे
तेरी मिट्टी है माथे का चंदन, तेरे खेतों से निकले है कुंदन
ऐ वतन आबे-जमजम के झरने, तेरी नदियों से झरते रहेंगे
ओढ़ कर इसकी मिट्टी का आँचल, गोद में इसकी सो जाएंगे हम
ऐ ‘अनीस’ इस वतन की फ़ज़ा, में ख़ुशबू बन के बिखरते रहेंगे
तेरी मिट्टी में पैदा हुए हम ख़ाक में तेरी मिल जायेंगे हम
ऐ वतन तेरी दिलकश फ़ज़ा में ख़ुशबुओं सा बिखरते रहेंगे