ऐ लड़की
ऐ लड़की ! कैसे बोल रही है इससे हमारे यहाँ ऐसे बात नही करते हैं समझी ! समता के विवाह के तीन महीने ही हुये थे और सासू माँ के ये शब्द गरम शीशे की तरह कान में गिर रहे थे कसूर क्या था पाँच साल की छोटी भतीजी को दाल चावल के साथ हरी सब्जी खाने को ही तो बोल रही थी बिटिया को हरी सब्जी खाना पसंद नही था तो बिटिया ना खाने की ज़िद कर रही थी तो थोड़ी आवाज कड़क करके उसको समझा रही थी की ” नही बेटा सब्जी खाना ज़रूरी है ” थोड़ा सा खा कर देखो इतने में तो बस शुरू हो गया इनका…ऐ लड़की…ऐ लड़की…ऐ लड़की , समता का नाम नही लेती थीं उनके हिसाब से समता बदसूरत थी ( जबकि ऐसा कुछ नही था हाँ रंग बहुत गोरा नही था बस ) और बदसूरत का नाम लेने से उनकी ज़बान गंदी हो जायेगी । सर्वगुण सम्पन्न बहुत पढ़ी लिखी समता का ससुराल में ये सम्मान था उसके आने के बाद खाना बनाने वाली को हटा दिया था दो नौकरानियों का क्या काम ? दिन से रात रसोई में काम करती मेहमानों के सामने जाने की इजाजत नही थी उनके जाने के बाद जूठे बर्तन उठाने की ज़िम्मेदारी समता की थी , अमेरिका से मामा ससुर की बेटी आई थी उसके सामने समता को दिखाते हुये बोलीं ” ये देख कैसी बदसूरत लड़की ब्याह कर लाया है तुम्हारा भाई जबकि मामा की लड़की समता की दोस्त थी ।
समता जी भर कर पूरे घर की सेवा करती उसी के हाथों का बना खाते और उसी से नफरत करते , उन्हीं दिनों समता उम्मीद से हुई सारा दिन काम करती कोई उसका हाथ न बटाता सबको खाना खिला कर खाना खाती कभी कभी रात में खाना खतम हो जाता ( सासू माँ जितना बनाने को बोलती उतना ही बनाने की इजाजत थी नही तो मजाल जो समता की रसोई में खाना कम पड़ जाये ) समता को दो भूखी जानों के साथ भूखा सोना पड़ता , सासू कहती ” पता है खाना खतम हो गया है अगर ब्रेड खाने को कहूँगीं तो सुबह नाश्ते की दिक्कत हो जायेगी ( बेकरी घर के पास ही थी ) ।
ऐसे ही समय बीतता गया समता ने बहुत ही प्यारी सी बेटी को जनम दिया घर में काम करने वाली धोबन ने सासू माँ से मिठाई की दरख्वास्त कर दी बस फिर क्या था अंदर का ज्वालामुखी फूट पड़ा ” किस बात की मिठाई लड़की ही तो पैदा की है ” बेचारी धोबन अपना सा मुँह ले कर रह गई । अस्पताल से समता घर आई नहा धो कर चैन से अपने बिस्तर पर बैठी थी दोपहर के खाने का वक्त हो रहा था और समता की दवाईयों का भी ( एक नौकरानी काम नही कर सकती थी तो थोड़े दिन के लिए दूसरी का इंतजाम किया गया था ) खाना बनाने वाली ने पहली रोटी समता को दे दी तभी सासू माँ आई और खाना बनाने वाली से बोली तवे पर जो रोटी थी कहाँ गई ? वो बोली वो रोटी तो मैंने भाभी को दे दी…हरामखोर तनख्वाह मैं देती हूँ और रोटियां तू दूसरों को खिलाती है सासू माँ अपने रौद्र रूप में थी इधर समता सब सुन रही थी रोटी उसके गले के नीचे नही उतर रही थी ।
एक दिन घर के बड़ों ने सासू माँ से गहने बाँटने की बात कह कर उनकी आधी से ज्यादा जान ही निकाल… दी सासू माँ ने ” ऐ लड़की ” से भी गहने बाँटने की बात की सोचा चलो इसी बहाने इसकी अजमाइश भी हो जायेगी , समता को गहनों का बहुत शौक था लेकिन विवाह के बाद ससुराल में गहनों पर मचे संग्राम को देख उसका शौक रफूचक्कर हो चुका था और अब उसको ना सासू माँ के गहनो में कोई दिलचस्पी थी ना उनके षडयंत्रो में…उन पूछने पर उसने बड़े आराम से कहा – मम्मी आपको गहने बाँटने की कोई ज़रूरत नही है ये आपकी सिक्योरिटी है अपने पास रखिए जब आपका दिल करे बाँट दिजियेगा और हाँ एक बात और मैने आपके गहने पहनने के लिए तो विवाह किया नही है आप बेफिक्र रहिये मेरे रहते कोई भी आपसे जबरदस्ती गहने नही बटवा सकता…सासू माँ के चेहरे पर सुकून था और वो आँखों में आश्चर्य भर समता को देख रहीं थी कि आज मेरीे मुसीबत में मेरे साथ खड़ी है ” ये लड़की ” जिसका मैं नाम तक लेना पसंद नही करती हूँ इधर सासू माँ की सोच से बेखबर अपनी नन्ही सी बिटिया को प्यार करने में मगन थी ” ऐ लड़की ” ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 21/05/20 )