ऐ बाबू बताना
ऐ बाबू बताना
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ना बरगद है कोई ना पीपल कहीं पर
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
ना अमवा की डाली ना छोटे टिकोरे
ना जामुन कहीं पर ना बगिया कहीं पे
हमने ढूँढा बहुत दोस्ती का ठिकाना
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
कोई प्यार से मीठी बातें तो करता
ना करता मगर मेरी बातें तो सुनता
देख पाया है सब कुछ शहर आके जाना
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
भीड़ है हर तरफ आदमी आदमी है
सभी दौड़ते हैं जगह की कमी है
याद आता है खलिहान में दौड़ जाना
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
ना मैया है अपनी ना भैया कहीं पर
जो दो प्यार की मीठी बोली तो बोले
समझ ही गया ज़िंदगी का तराना
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
दो रोटी की खातिर सुबह शाम इक है
कुछ तो कमाना है घर लेके जाना
बच्चे जिद्द पर अड़े हैं यही हमको खाना
क्या बनाऊँ बहाना, ऐ बाबू बताना।
दर्द ही दर्द चारों तरफ है निगोड़ा
दुःख ने दुखाया कहीं का ना छोड़ा
मिल जो पाए कहीं पर खुशी का ठिकाना
रिश्ते कैसे निभाना शहर आके जाना।
ना बरगद है कोई ना पीपल कहीं पर
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना
ये कैसा शहर है ऐ बाबू बताना।
—अनिल कुमार मिश्र
हज़ारीबाग़, झारखंड
भारत