ऐ ज़िन्दगी !
अजीब कशमकश से गुज़र रही है क्यूं।
ऐ ज़िन्दगी आजकल संवर रही है क्यूं।
बहुत पीछे रह गया है वो मोड़ अब ;
वहां लाकर मुझे ठहर रही है क्यूं।
ऐ ज़िन्दगी………
कहना था बहुत कुछ मुझको तब मगर;
उन शब्दों को ढूंढ के सहर रही है क्यूं।
बदल गया वक्त और मैं भी देखो तो;
आइने सी अब मुझको लहर रही है क्यूं।
ऐ ज़िन्दगी…….
यादों के पन्ने थे यूंही धुंधले से हो गए;
ख्वाबों को पँख दिखा पसर रही है क्यूं।
जिस गली में तेरा आना जाना था बहुत;
मंज़िल मेरी उसी राह से गुज़र रही है क्यूं।
ऐ ज़िन्दगी……….
कामनी गुप्ता***
जम्मू !