ऐसी होती हैं किताबें
गीत
ऐसी होती हैं किताबें
रामायण, गीता सी पुजतीं ,
ऐसी होती हैं किताबें।
देह में ढलतीं निखरतीं ,
ऐसी होती हैं किताबें।।
एक तरफ दुनिया का मेला,
फिर भी मानव है अकेला ।
साथ जब छोड़े सभी तो,
हमको अपनातीं किताबें।।
रामायण गीता सी ——-
झूठे हैं सब रिश्ते नाते,
विपत्ति में सब मुंह छिपाते।
तब सखी माता पिता बन ,
हम को समझातीं किताबें ।।
रामायण गीता सी——-
देवता देवी को पूजे ,
सत्य क्या फिर भी न सूझे।
ज्ञानवर्धक हैंयुगों से ,
सरस्वती होती किताबें।।
रामायण गीता सी ——-
साँसों का जब तार टूटे ,
दुनिया और परिवार छूटे।
मोह माया से छुड़ाकर,
मरना सिखलातीं किताबें।।
रामायण गीता सी——–
देह त्याग तो कर गये हैं,
नाम से वो अमर हुये हैं।
राम,कृष्ण ,गांधी को अब तक,
जिंदा रखती हैं किताबें।।
रामायण गीता सी——-
जो नकल जूतों में भरते,
उम्र भर पग-पग पे गिरते ।
याद न की थीं कभी अब ,
रोज याद आतीं किताबें।।
रामायण गीता सी ——-
जो पढ़े मिले उनको गद्दी,
अनपढ़ों को हैं ये रद्दी ।
दिये सी जल के प्रकाश दें,
कहीं चूल्हों में जलतीं किताबें।।
रामायण गीता सीे ——–
देह मानव फिर न मिलता,
मोक्ष का अवसर न मिलता।
अज्ञानी पशुतुल्य रहो तो,
खुद भी शरमातीं किताबें।
रामायण ,गीता सी———
✍🏻श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव