ऐसी गलती फिर न होगी (बचपन की सीख से)
रामनिवास सपरिवार नई दिल्ली से सट्टे एक छोटे से गाँव दौलतपुर में रहता था। उसका दुनिया अपने बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती थी । मीना उसकी चहिती बेटी थी । वह बड़ी शरारती थी । अक्सर पापा को अड्डे पर खड़ा देख अपनी सखियों संग स्कूल जाते समय पुकारती – पापा !!
रामनिवास की आँखों मे मानो चमक सी आ जाती और झट से कहता ,” रामवीर , बच्चों को चॉकलेट तो देना ।” और फिर क्या था मीना की खुशी का ठिकाना न रहता ।
गर्मियों के दिन थे – मीना की सहेलियों ने कहा चलो आज दोपहर हरा साक लेकर आते हैं । वे इससे पहले भी जाती थी परंतु मीना पहली बार उनके साथ जा रही थी । उसे तो ‘पालक-कासन और मेथी-बरसम’ का अंतर भी नहीं पता था परंतु जिज्ञासावस उसने माँ से जाने की सहमति ले ली । माँ ने कहा,”बेटी साँझ से पहले आ जाना , नहीं तो बाबू जी गुस्सा करेंगे।” ठीक है -माँ ! यह कहकर वह दोपहर के लगभग 3 बजे अपनी सखियों संग चली गई । वे मंदिर पास वाले शामलाल के खेतों में चले गए । सभी एक-एक कर बथुआ तोड़ने में जुट गई , वहीं दूसरी और मीना को खेत मे खड़ा देख गीता ने पूछा,”क्या हुआ मीना ? तुम खड़ी क्यों हो साग क्यों नहीं तोड़ रही । मीना ने गरदन झुकाते हुए कहा , मुझे नहीं पता तोड़ना क्या है !” ये सुन सभी सखियाँ ज़ोरों से हँसने लगी ….. ।
अनिता बोली, इधर आओ , मैं बताती हूँ क्या तोड़ना है । मीना ने देखा , समझा और साग तोड़ना शुरू कर दिया । कुछ समय बाद अनिता बोली , तुम्हें पता हैं फूलसिंह काका ने इस बार खेत मे गाजर-मूली उगाई है । चले क्या पास ही में है ?? हाँ चलते हैं । तभी उनमें से एक ने कहा, “नहीं फुलू काका बड़ा डाँट ते हैं, गर कोई उनके खेत मे घुस जाए ।” अनिता ने गरबीली आवाज़ में कहा, “मैं हूँ न , पहले देख लेटी हूँ वे हैं भी या नहीं , फिर उनके खेत मे घुसेंगे । और सब उस ओर चल दिए ….। आखिर थे तो बच्चे ही । फूलसिंह उस समय धूप से बचने के लिए ट्यूबेल के पास लगे पेड़ की छांव में बैठा था । अनिता , कोई नहीं है ,लगता है काका खाना खाने गए हैं । चलो ! मूली का स्वाद चखे । मिना को नहीं पता था कौन- सी मूली उखड़नी है । वह जिसे भ8 उखड़ती छोटी सी निकलती । ऐसे करते- करते बच्चियों ने बहुत-सी मूली-गाजर की पौध बर्बाद कर दी । फुलू ने बच्चों की आवाज़ सुनी तो उस और दौड़ा ।
तुम फिर आ गए …। आज नहीं छोड़ूँगा तुम्हें । सभी लड़कियाँ दौड़ने लगी । लड़कियाँ आगे-आगे और फुलू काका पीछे-पीछे । और ऐसे वे गीता के घर पहुँच गुए , और भाई धर्मपाल देख तेरी बेटी न क्या किया!! क्या हुआ भाई फुलू ? मेरी सारी पौध खराब कर दी ।भाई माफ़ कर दे बच्ची है आगे से नहीं करेगी ।मीना वहीं दरवाज़े के पीछे से सब देख रही थी और डर रही थी कही काका उसके घर न पहुँच जाए । अर बेटा! और कौन था बता मुझे आज तो मैं सबके घर जाऊँगा । वो …वो…काका रामनिवास की मीना भी थी ।फिर क्या था-मीना के तो मानो प्राण सूख गए ।वो आगे-आगे और काका चिल्लाते-चिल्लाते पीछे-पीछे । बरांडे में ही मीना के बाबू जी हुक्का पी रहे थे मीना को देख बोले , “कहा से आ रहा है मेरा प्यारा बेटा !” तभी पीछे से फुलू काका की आवाज़ सुनाई दी । मीना जाकर मम्मी का आँचल पकड़ कर खड़ी हो गई । रामनिवास भी तेरी छोरी ने देख खेत का क्या सत्यानाश किया है !! काका , मीना तो आज पहली बार गयी है उसे माफ़ कर दे इस फिर नहीं होगा । फुलू काका भी यह देख चले गए । रामनिवास ने न आव देखा न ताव ओर पास पड़ी लकड़ी उठाकर मीना की ओर दौड़े – अब तुम इस तरह की शरारतें भी करोगी , किसी की मेहनत तुम्हें नज़र नहीं आती । मीना माँ का आँचल पकड़ ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और बोली , ऐसी गलती फिर नहीं होगी बाबू जी ! मुझे माफ़ कर दें SS, बिना पूछे किसी से कोई चीज़ न लूँगी ….। यह सुन रामनिवास ने मीना को सीने से लगा लिया ।