**ऐसी कोई कहानी नहीं**
**ऐसी कोई कहानी नहीं**
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ऐसी कोई जवानी नहीं,
जिसकी कोई कहानी नहीं।
देख लो चाहे सारा जहां,
मिलती कोई निशानी नहीं।
छाया रहता नशा हर पहर,
चाहे गांव हो या फिर शहर,
आई ऐसी सुनामी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
जाति पाति न आती नजर,
आशिकी की है टेढ़ी डगर,
जग में होती पुरानी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
खोया खोया सा रहता मन,
आग छूती रहती तन बदन,
रुत कोई भी अज्ञानी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
प्रीत से लगती ऐसी लड़ी,
देखती दुनिया होकर खड़ी,
बेला ऐसी रुहानी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
खुदा से होता जैसे मिलन,
दूसरों के मन होती जलन,
कहता कोई जुबानी नहीं।
ऐसी कोई कहानी नहीं।
जी लूँ हर लम्हा जी भर के,
पी लूँ हर गम यूँ मर मर के,
मन में कोई गुमानी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
मनसीरत की यही आरजू,
बन जाऊं ना खुद गरज़ू,
भूली बिसरी रुमानी नहीं।
ऐसी कोई जवानी नहीं।
ऐसी कोई कहानी नहीं,
जिसकी कोई जवानी नहीं,
देख लो चाहे सारा जहां,
मिलती कोई निशानी नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)